Friday 30 August 2013

आखिर वह दिन आ गया.......................................


हम पिकनिक के बारे में सोच रहे थे की, पिकनिक कब लेके जाएंगे | फिर प्रार्थना सभा में अध्यापकोने  बताया की, रविवार को पिकनिक लेके जायेंगे | उसके साथ-साथ कहा गया की, रोटी और खेतली की सब्जी लेते हुए आना |

हम सुबह जल्दी उठे | सुबह उठकर गरम पानी से स्नान किया | फिर हमने खाना बनाया | घर से खाना खाते हुए, हम विद्यालय आ गए और उसके साथ-साथ टिफिन भी लेके आये | सभी ने दो-दो की लाइन बनाई | फिर हम बस में बैठे | बस काफी बड़ी थी | फिर बस पिकनिक के लिए रवाना हुई | बस जब शुरू हुई तो हमने प्रार्थना, समूह गान गाया | हमने बस में अन्ताक्षरी गाई, कुछ बच्चे नाच रहे थे |  फिर उदयपुर से लेके हल्दी घाटी लगभग दोपहर के १ बजे तक पहुचे|
हल्दी घाटी में मौसम ठंडा था | वहा पर ऊंट को सजाया था, लोग ऊंट पर बैठकर घूम रहे थे | फिर हम सब दरवाजे के पास पहुचे, दरवाजा काफी बड़ा था | वहा पर महाराणा प्रताप के बारे में काफी जानकारी अलग-अलग माध्यम से बताई गयी | वहा पर महाराणा प्रताप की तस्वीर देखी, उसके साथ साथ, महाराणा प्रताप और अख़बर के बीच हुई लड़ाई को वोडीओ के माध्यम से दिखाया | हमें महाराणा प्रताप के बारे में बताने के लिए गाइड भी था |

वहा जब महाराणा प्रताप की लड़ाई हुई, तो उनके साथ लड़ने वाली सेना बहुत बड़ी थी और महाराणा प्रताप की सेना कम थी | युद्ध करते वक़्त महाराणा प्रताप की सेना कम होती गई | महाराणा प्रताप घबराने लगे | महाराणा प्रताप का चेतक घोडा बहुत खतरनाक और समझदार था | लड़ाई करते वक़्त उसके पैर पर चोट लगी थी तब पर भी तीन पैरो पर पाच किलोमीटर नाला पार करके उसने उनकी जान बचाई और उसके के बाद उसकी मृत्यु हो गई | वही पर उसकी समाधि बनाई | उसके बाद महाराणा प्रताप जंगल में रहे, उन्होंने यह शपथ ली की, “जब तक चित्तोड़ आजाद नहीं होगा तब तक मेरा महल यह जंगल है, पत्तो में खाऊंगा, घास में सोऊंगाउन्होंने २२ वर्ष जंगल में बिताए | म्यूजियम में महाराणा प्रताप के तीर, तलवार, लोहे के कपडे थे | उन्हें जो भी प्रमाण-पत्र मिला सभी वहा पर लगे हुए थे | हल्दी-घाटी में रेत, मिटटी, मकान आदि पीले थे| वही पर हमने बहुत फोटो भी खीचे |

जिस जगह महाराणा प्रताप और अख़बर का युद्ध हुआ वहा पर हमने पार्क में खाना खाया | भोजन से पहले मेम ने अखबार दिया, क्योंकि हम पार्क को साफ़-सुथरा रख पाए | जो भी कचरा हुआ था उसे हमने कचरा पात्र में डाल दिया |
खाना खाकर फतेह सागर झील को देखने के लिए रवाना हुए | झील बहुत बड़ी थी, उसमे बड़ी-बड़ी मछलिया थी | झील के किनारे कुछ नाव खड़े थे, तो कुछ नाव झील के दूसरे पार जा रही थी | फतह सागर के अंदर महल बनाए हुए थे | वहा पर भी महाराणा प्रताप के बारे में जानकारी थी | चेतक घोड़े पर बैठे हुए महाराणा प्रताप का चित्र बना हुआ था | हकीम खाँ सूरी का भी चित्र बना हुआ था | वहा पर एक मटका था और उसी मटके में से पानी निकल रहा था | फिर कुछ बच्चोने ने आइसक्रीम तथा चोकोबार खाई|

उसके बाद हम गुलाब बाग़ में गए | वहा पर कई प्रकार के फूल थे उसके साथ बड़े-बड़े वृक्ष भी थे | वहा पर झुला झूलने वाला भी था | वहा पर चिड़िया घर देखना था, पर वो बंद हो चूका था | फिर हमें रेलगाड़ी में बिठाया गया | रेलगाड़ी में बैठने के लिए हमें दो समूह में बाटा गया | फिर हम बारी-बारी से बैठे | रेलगाड़ी में बैठकर हमने पुरे गुलाब बाग की सफर की | रेल में बैठे-बैठे हमने, भालू, हिरन और बतख देखे | हिरन कूद रहे थे, भालू आराम से बैठा हुआ था | कुछ बतख लम्बी-लम्बी और बड़ी-बड़ी चोच वाले थे और कुछ छोटी-छोटी चोच वाले थे | बंदर पिंजरे में से निकलने के लिए इधर-उधर घूम रहे थे | लाल, पीले रंगों के तोते थे, मछलिया वे काच में बंद थी | रंग-बिरंगे चिड़िया थी |

शाम को ७ बजे के करीब हम घर के लिए रवाना हुए | रातको घर लौटने के बाद रोटी भी नहीं खाई | फिर सोचते-सोचते नींद आ गई | हमें बहुत आनंद आया | हमें पिकनिक जाकर बहुत अच्छा लगा एवं वहा पर बहुत मजा किया | हमने बहुत मनोरंजन किया|

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