Monday 28 October 2013

टेलर आंटी से मुलाक़ात......................

आज में टेलर आंटी के पास गई थी | मैंने उससे कहा कि, मेरा फटा हुआ शर्ट सिलाके दीजिए, उन्होंने कहा कि वो सिलाके दे देगी | तो बातो बातो में पूछने लगी कि, क्या कर रही हो? मैंने जवाब दिया कि मेरी ट्रेनिंग चल रही है | और उसके बाद मै और पढ़ना चाहती हू | उन्होंने कहा कि, बहुत अच्छा ! वो आगे कहने लगी कि, आजकल लड़किया बहुत पढ़ने लगी है | क्योंकि लड़किया कर सकती है | वे बहुत कुछ सह सकती है | वो पढके पुरे को घर को संभालती है | लेकिन यह लड्कोंके के लिए काफी भारी है | वो कोनसा भी भार सह नहीं सकते | लड़किया आजकल बहुत आगे बढ़ रही है | यह लड़के तो पढते ही नहीं | क्योंकि उनके लिए सारे भार को संभालना कठिन है |

मुझे यह बात सुनकर लगा कि, क्या औरते वाकई में सहनशील है जैसे कि मैंने पहले सोचा था | हां वे सहनशील है क्योंकि कुछ औरते पहले से ही सहनशील बनाई गई तो कुछ बन गई है | इस विचार से औरते सोचती है कि, “मुझे ती यह करना ही है| अगर में नहीं करुँगी उनका (पति, बच्चे, सास, ससुर, पिताजी इत्यादी ) क्या होगा ? शायद इस प्रश्न से वो हमेशा झूझती रहती है | इसलिए वो जो चाहे वो करती है | उसमे वह अपने आप को तथा दुसरोंको भी खुश करती है |

 
पर सवाल मेरा यह फिर से है कि, क्या वो यह सबकुछ करके खुश रह पाती है? शायद हां ! मेरी आज ही गीता बेन से बात हुई कि, उसने आजकल सबकुछ छोड़ दिया है | वो मारवाड़ी के घर काम कर रही है | और वो अब सिर्फ अपने बहन और उसके लड़के को देख रही है | बस ! अपनाकाम भला और में भली | और इस सोच से वो खुश भी है |


आंटी जी ने आगे कहा कि, “आजकल लड़कियोंको सजग रहना चाहिए| दिल्ली में जो गैंग रेप हुआ उससे पूरा दुनिया में तमाशा हुआ | वह लड़की अगर अपने दिमाग का इस्तेमाल करती तो उसके साथ कुछ नहीं होता | इसलिए लड़कियों ने अपने पर्से  में हमेशा कुछ ना कुछ रखना चाहिए जैसे मिर्ची का पावडर, स्प्रे इत्यादी | ताकि वे अपने जान को बचा पायेगी | औरत कितनी भी होशियार या निडर हो पर उसे तो डर लगता ही है | हमेशा उसने अपने आप को सतर्क रखना चाहिए | 
मनातील विरह किती असतो कठिन

आठवणींचा विरह तो ही किती त्रासदायी

काहीच सुचत नाही त्या विरहात  कारण मनच जागेवर नसते

असते मीही एकटी

हवी साद तुझी

नको काही जीवनात

फक्त हवे तुझी साथ

कारण देते ती जीवन जगण्याची शक्ति


Sunday 27 October 2013

जुनी फोटोमधिल आठवणी......................

सांत्वनाला स्तुती भरविताना
अनुश्री जेवण बनवित असताना.............


नविन लग्नातील जोडपी 

सांत्वना मला नेलापोलिश लावताना,,,,,,,,,,

स्तुती चा रेसकोर्स मधील फोटो































जिदंगी है खुबसूरत




जिदंगी है खुबसूरत
उसमे है जीना
आनेवाली पीडाओ को है तोड़ना
जानती हु मै यह सोच भी इतनी सच नहीं लेकिन उसे जीना है

मानते हुए यही की जिदंगी है खुबसूरत
क्योंकि उसकी खूबसूरती हो मै सजाना चाहती हु
उसके साथ रहना चाहती हु
क्योंकि उसी मै है मेरी जिंदगी
क्योंकि जिदंगी है खुबसूरत.............

Wednesday 23 October 2013





मन को संभालते........संभालते

खुद को भूल गए


दुसरे के प्रति संवेंदनशील होते..........होते

खुद ही असंवेदनशील हो गए

सफर उदवाडा का.......................................

मुझे शेठ और बाई के साथ जब मौक़ा मिला उनके गाव “उद्वाड़ा” जाने के लिए तो मै काफी खुश थी| क्योंकि मुझे कुछ नया देखने मिलने वाला है| सबसे पहले मेरे लिए यह बात काफी आकर्षित करती थी की मुझे गाव देखने का मौका मिलने वाला है| बरसों साल पहले वहा पर पारसी ही लोग रहते थे, आज भी कुछ घर है| लेकिन कईयो ने अपने घर को बेचकर शहर में चले गए| अब वहापर जैन, गुजराती लोग रहते है|
जाने से पहले आखो में गाव की यह छवि थी की जिसमे मुझे लगा की दूर-दूर तक घर होगे, वहा के घर काफी पुराने के किस्म के होगे लेकिन जाने के बाद देखा की, उनके सामने, बगल में भी घर है| वैसे तो शेठ-बाई कभी-कभी गाव जाकर देखते है लेकिन उन्होंने एक औरत भी रखी है जो हर दिन घर की सफाई करके जाती है| उसे वे “गंगा” कहते है, उनका नाम गंगूबाई है| उन्हें चार बच्चे है| उनके बच्चे के भी बच्चे है| बाई कह रह थी की गंगुबाई की माताजी वहापर आती थी, उनके गुजरने के बाद गंगुबाई ने घर संभालने का काम लिया|

ट्रेन का सफर आते-जाते वक्त काफी अच्छा रहा| बाई-शेठ ने काफी बातचीत की| वे मुझे हर तरह की बाते बता रहे थे जैसे उनके गाव, धर्म, लोग इत्यादि| इसलिए सफर में बोरियत सी महसूस नहीं हो रही थी| उस बिच खाने-पिने की चीजे बेचनेवाले भी लोग थे| मेरे सिट के सामने ही एक औरत थी| वो अपने पती से काफी नाराज थी| इसलिए वो मुम्बई में अपने भाई के घर आई थी भाई के घर से निकलने के बाद उसकी ट्रेन प्लेटफार्म से छुट गई थी इसलिए उसे दूसरी ट्रेन पकड़ने पड़ी| उसके भाई ने उसे फ़ोन किया की वो कहा है लेकिन उसे विश्वास नहीं हो रहा था की उसकी बहन गाडी में बैठी है| इसलिए उस औरत ने मुझे उसका मोबाइल थमाते हुए मुझे कहने के लिए कहा| काफी अजीब लगा मुझे फोनपर बात करते हुए| बिच ही बिच वो गाडियों का वक़्त, घासलेट का बढ़ता हुआ भाव इत्यादि की बात कर रही थी| ऐसे लग रहा था की उसे बहुत कुछ बोलना था लेकिन मुझे ऐसा कुछ मौक़ा ना मिला| गाडी में दो बड़े बच्चे डफली-खंजेरी भी बजा रहे थे| अच्छा बजा रहे थे|
गाडी में बाई-शेठ बता रहे थे की, इरान में जब जब पारसी लोगो को मुस्लिमो की ओर से निकाला गया तो वे भारत में आ के उन्होंने अपने सामाज के लोगो को स्थापित किया| पहली बार उनका पैर गुजरात के संजान गाव को छुआ था| उसके बाद उदवडा, वापी, सूरत इन जगह में बिखर गए| शेठ आगे बता रहे थे की, उदवडा इस गाव का नाम पहले ऊंटवडा था क्योंकि उस गाव में जाड़ेराणा नाम के राजा के ऊंट हुआ करते थे| उन दिनों में तो जाडेराणा तो संजान गाव के राजा थे|
वे कह रहे थे की संजान गाव में उनके कुछ भाइयो ने एक बहुत बड़ी सी कैप्सूल बनाई है जिसमे उनको जो भी धर्म, क्रियाकर्म, ऐतिहासिक वास्तु, तस्वीरे इत्यादि चीजो को कैप्सूल में भर दिया है| कैप्सूल को जमीन के अंदर गाडा गया है और उसके उपर स्तंभ भी बनाया है| ताकि यह दुनिया जब पूरी तरह से नष्ट हो जाए और दूसरी पीढ़ी जब आएगी तो उत्खनन के द्वारा उन्हें पता चले की इससे पहले कौन लोग रहते थे|
पारसियों के धर्मगुरु ने जाडेराणा के साथ बातचीत की| वो इस तरह से थी की जाडेराणा ने दूध से भरा हुआ गिलास धर्मगुरु को दिया यह बताने के लिए की, “हमारी प्रजा यहाँ पर है जो अधिकतर भरी हुई है तो उसमे आपके लोग ना समा पायेगे, तो इसका जवाब धर्मगुरु ने दूध के गिलास में शक्कर डाली और जाडेराणा को पिने दिया उसका मतलब यह था की आपके स्थान को में हमारे लोगो की मीठास भर देगे| फिर इस तरह से पारसी लोगो को संजान से लेकर सूरत, फिर मुंबई तक वे बढ़ गए| जाड़ेराणा के नियम के अनुसार उनकी कई शर्ते पारसियों को माननी पड़ी| हिंदुओ में शादी दिन में की जाती है इसलिए इन्हें यह नियम दिया की वे रात को शादी का वक़्त रखे|
शाम के वक्त हम उद्वाड़ा स्टेशन आ पहुचे| छोटा सा स्टेशन है| स्टेशन से ६ किलोमीटर की दुरी पर गाव था| गाव में पहुचने के लिए रिक्शावाले को WZO कहते है ताकि वो निश्चित जगह पहुचा पाए| WZO याने की WORLD ZOROASTRIAN ORGANISATION. यह संस्था उदवाडा के रतनाशाहां के प्रॉपर्टी का सही इस्तेमाल होने की वजह से कुछ पारसियों ने मिलकर बनाई है|
कहा जाता है की, पुराने लोग यह मानते थे की गाव स्टेशन से हमेशा दूर ही रखते है वो इसलिए की वो नहीं चाहते की उसका शहर बने| लेकिन तब पर भी अब गाव में केमिस्ट का दूकान बना है| उसके अलावा एक्सिस बैंक का एटीएम भी खुल रहा है| घर के पास ही एक बहुत सा सुंदर सा समुन्दर है| बाई बता रही थी की पहले यह समुद्र काफी स्वच्छ था लेकिन कई लोग यहाँ पर बाहर छुट्टी मनाने आते है इसलिए इसमें काफी गंदगी हुई है| बाई ने मुझे शुक्र का चमकता हुआ तारा दिखाया, जो बहुत ही खुबसूरत है| कह रही थी की शुक्र का तारा आकाश में रातको पहले आता है उसके बाद अन्य तारो का आगमन होता है| मैंने समुद्र की तस्वीरे भी खिची|
जब पूरी पारसी प्रजा गुजरात में आ पहुचे तो उनके अग्नि-दैवत को भी लाया गया| उद्वाड़ा पहला पारसियों का मंदिर स्थापित हुआ जिसका नाम है “इरानशाहा” यह अग्यारी से भी बड़ा मंदिर है|जिसमे  इरान के अग्नि-दैवत को उदवाडा में स्थापित किया इसलिए उस पहले अग्नि के मंदिर (अग्यारी) को इरानशाहा कहते है| फिर उस ही अग्नि के दिये को अन्य जगह में लाया गया जिसे “अग्यारी” कहते है| इस अग्नि को पवित्र माना जाता है| अग्नि की पूजा उनके धर्मगुरु के द्वारा अग्यारी में की जाती है| पारसी के अलावा अन्य जाती के लोग अग्यारी में आने को मना किये जाते है| क्योंकि इस धर्म में प्रवेश करने के लिए उन सारी विधियों से जाना होता है ताकि अग्यारी में प्रवेश करने के काबिल हो सके|

शेठ उनके बचपन की कुछ यादे बता रहे थे की वे एकदिन सिगरेट पिने का ढोंग उनके पिताजी के सामने कर रहे थे उनके पिताजी ने उन्हें बहुत पिटा वो इसलिए क्योंकि अग्नि के साथ मजाक नहीं किया जाता और उसे खिलोने की तरह खेला नहीं जाता| इससे पता चलता है की आग का महत्व उन लोगो के लिए कितना है|
पारसी लोग काफी शांति से रहना पसंद करते उसके साथ-साथ जिदंगी को बेहतर कैसे बनाया जाये इसपर काफी विचार करते है लेकिन यह विचार इतना आगे तक ले जाता है की कई लोग शादीया ही नहीं करते| इस वजह से इनकी संख्या काफी कम होती जा रही है| कई लोग उनके धर्म के रीतिरिवाजो से भागते है इसलिए पारसी पंचायत ने स्कूल भी निकाली है जहापर बच्चे को धर्म की शिक्षा और उसके साथ औपचारिक शिक्षा भी ले| ताकि बच्चे को सात साल के धर्म की शिक्षा लेते हुए वे अपनी प्राइमरी, अपर-प्राइमरी और हाई स्कूल के शिक्षा से भी वंचित ना हो| और ऐसे बच्चो को स्कूल से पैसे दिए जाते है| अगर बच्चा पहले नम्बर पर हो तो उसे महीना तीन हजार, दूसरा हो तो पाच हजार और तीसरा बच्चा हो तो पंधरा हजार की रकम दि जाती है| ताकि वे धर्म की सीख और उसका वारसा आगे तक ले जाए|    
घर तो देखा जाए तो बंगले है जो काफी बड़े है| साग, बबुल के पेड़ से घर बने है| नारियल, आम, ताड़, अनार के पेड है| कहाँ जाता है की वे लोग ताड़ की ताड़ी बनाते हुए बेचते थे| उसी के साथ – साथ वे पापड, भाकरा भी बनाते थे और उसे बेचते थे| उदवाडा के पापड प्रसिद्ध है| लेकिन अब इन पापड़ बनाने के आ काम वहा के अन्य समाज के लोग करते है| कईयो के घर के आँगन में कुआ भी है, उन दिनों पानी की सुविधा सरकार की और से नहीं होती थी इसलिए उन्होंने अपने कुए बना लिए, मैंने एक कुए में कछुए को भी देखा वो इसलिए होता है क्योंकि वो पाणी को साफ़ रख पाए|
उनके उदवाडा के घर को काफी पवित्र माना जाता है उसके साथ अगर कोई महिला को महावारी आ जाए तो वो उस घर में रूक ही नहीं सकती| उसे तुरंत उस घर को छोड़ना होता है| ऐसे कहा जाता है की उन घर के महिलाओं को जब महावारी आती थी तो उन्हें अलग कमरे में रखा जाता था आज भी वो कमरा है| उसे जमीन पर ही सोने के लिए देते थे, वो किसी भी चीज को हाथ लगाने के बंधिश थी| महावारी आने के पहले पाच दिन और आ जाने के बाद के पाच दिन तक उसे अलग सा रखा जाता था| फिर उसे सिर से पाँव तक के स्नान के बाद ही वो घर में घूम पाती थी|
पारसियों में भी उनकी अन्य जनजाति है जैसे दस्तूर, ब्राह्मिण| वे लोग होते है जो उनके क्रिया-कर्म का उनका काम करते है जैसे श्राद्ध के लिए जो खाने का नैवेद्य दिखाते है उसे बनाने का मान सिर्फ उन्हें ही मिलता है| उसको अन्य पारसी के लोग नहीं बना सकते है| बनाते वक्त वे काफी चीजो का ध्यान रखते है| नैवेद्य बनाते वक्त जो पारसी लोग नहीं है उन्हें किचन में आने की इजाजत नहीं होती| खाना बनाने से पहले उपर से नीचे तक नहाते-धोते है, पुराने कपडो को छूते तक नहीं| फिर नैवद्य बनाते वक्त घर  में किसी भी वस्तु को नहीं छुआ जाता जैसे की चूल्हे को भी नहीं छुआ जाता है| सिर्फ बरतन और खाने की सामग्री को छुते है| वैसे तो बाई और शेठ तो नैवेद्य लोगो को मुफ्त में बनाकर देते है|

शेठ कह रहे थे की, अच्छे काम और बुरा काम को स्वर्ग या नरक में समान तरीके से देखा जाता है| जैसे की जितना मैंने अच्छा काम किये हो उसका रिवॉर्ड उतना ही मिलेगा और जितने बुरे काम धरती पे किये हो उसकी शिक्षा भी उतनी ही मिलती है|
शेठ ने उनके हाथो ने अपने हाथो से पत्थर, शिपले की मदद से निर्जीव जानवर बनाए है जैसे हाथी, कछुआ जो काफी सुंदर तरीके से बनाए है| उन दोनों पती-पत्नी में सिखने करने की ललक काफी है| वे दोनों हमेशा कुछ ना कुछ पढ़ते-देखते रहते है और उसके बारे में जानकारी मुझे देते है| आज उनकी ही वजह से में उस गाव में जा पाई| बाई कह रही थी की इस गाव में आने के लिए नसीब होना चाहिए और यह मौक़ा मुझे मिल गया|  

Friday 4 October 2013

दिवस वटपोर्णिमेचे.........................

आज वटपोर्णिमा, म्हणजे स्त्रीयांचा दिवस ज्यात महिला, उपवास करतात, वडाच्या झाडाची पूजा करता व सात जन्मी हाच नवरा असावा अशी आशा ठेवतात, आज एका बाईशी बोलने झाले ती गेले १० वर्षापासून वटपोर्णिमा साजरा करते, व् तिला हाच पति असावा असे तिला वाटते, कारण नवरा तिच्यासोबत चांगला वागतो.

ज्या स्त्रियाचा पति तिच्या गरजा, मुलांचे संगोपन, परिवाराला बघणे तसेच स्वत:बद्दल ही काहीतरी चागले करण्याचा विचारात असने इत्यादि गोष्टी करीत नाही तर टी स्त्री तर कधीच असे म्हननार नहीं की हां पति सात जन्मी असावा.

माझा पहिला प्रश्न असा की का सात जन्म येणार का, कारण निसर्ग किंवा देवाच्या नियमानुसार उत्पत्ति आणि नाश ही गोष्ट होणारच, पण त्यात काय भरोसा तीच व्यक्ति, पशु-प्राणी पुन्हा एकदा जन्मास येइल? कारण मी अजुन तरी कोना व्यक्तीचा पूर्ण-जन्म पहिला नाही, म्हणून ह्या स्त्रियांची इच्छा पूर्ण होणार की नाही यात शंका आहे,


दूसरा प्रश्न असा येतो की एकाच व्यक्ति सोबत का प्रत्येक स्त्रीला रहायला आवडेल? सगळ्या तर तसेच विचार करत असतील का? का पुरुषांना पण असे वाटत असेल का की हीच पत्नी असावी कारण ते सुद्धा बहुतेक तिला वैतागलेले असावेत?

तीसरा प्रश्न असा की पुरुष का नाही उपवास करीत किंवा वडाची पूजा करीत नाही? बहुतेक समाजाने तो अधिकार दिला नसावा, म्हणून इच्छा असुनही पुरुष करीत नसावे, बहुतेक काही पुरुष उपवास करीत असेल की हीच बायको आपणास लाभावी जन्मो-जन्मी. पण किती विचित्र असेल जर पुरुष वडाच्या झाडाची पूजा करतो, कल्पना केल्यावरही ही किती विचित्र वाटते.

मात्र हा सण मला फार आवडतो, कारण सगळया स्त्रिया सकाळी उठून अगदी छान तैयार होतात, वडाची पूजा करतात, ह्या दिवशी वडाला खरच किती मान असतो त्यास ही बरे वाटत असेल. मी लहान होते तेव्हा आमच्या बाजुच्या घरातील मामी मला काळ्या मन्यांच्या माळा बनविण्यास बोलवित असे कारण पूजा झाल्यानंतर त्या स्त्रीयाना घालण्यास सांगत असे, तर त्या  माळेबद्दल खुप आकर्षण असे, मला असे वाटे की मी पण घालू पण घालू शकत नाही कारण कुवारी आहे, तरिसुध्हा एका महिलेकडून मी मागुन घेतले व हातात ब्रेसेलेट म्हणून हातात घातले, चांगले वाटते.

काही वर्षानंतर हां सन तर दिसानारच नाही कारण सण साजरे करने आजच्या नोकरदार महिलेला जमण कठिन आहे, तरीसुद्धा ज्याना खुपच आवड असेल तर त्या नक्कीच करतील अगदी कामाला दांडी मारून!