Saturday 25 April 2015

एक औरत की कहानी सुनते है उसकी जुबानी...................

“मुझे मंगलसूत्र पहनने को बड़ा ही मन करता था, इसलिए यह ख्वाहिश उन्होंने पूरी कर दी थी, उसके साथ कंगन और सिंदूर यह तीन चीजे मुझे बड़ी ही अच्छी लगती थी. यह पहनने के बाद ऐसे लगता है की (क्या बताऊ क्या लगता है) उसे केवल मैंने उनके साथ महसूस किया है. लेकिन इस पेहराव में मुझे हमेशा लगता था की मै उनके पास, उनके साथ हमेशा के लिए हु”. यह शब्द है इस औरत का जिसकी नई-नई शादी हुई थी. उसे लगता था की, इस पेहराव से वो उसके साथी के साथ जीवनभर अपना जीवन बिताएगी. लेकिन उसे क्या पता आनेवाले जीवन में उसके साथ यह मंगलसूत्र उसे धोखा दे देगा. उसे क्या पता था की पती-पत्नी का जीवन डर, संशय के उपर नही बल्कि, विश्वास, आदर, एकदूसरे के साथ हमेशा खड़े होने के बुनियाद पर बनता है. जहापर उस रिश्ते के साथ उन दोनों से जुड़े हुए अन्य रिश्ते भी उतने ही महत्त्वपूर्ण है.

जब उसने उस पती (उस व्यक्ति को) छोड़ दिया था तब उसे लगा की, उसका जीवन केवल भ्रम, और कल्पनाओं में तैरने वाला था. वास्तविक जिदंगी कुछ और बोल रही थी. वो कुछ और सुना रही थी. लेकिन उन आवाजो को उसने कभी भी सूना नही था, ना जाना था. जिस दिन जान गयी उस दिन पैरो तले जमीन खिसक गयी थी. अपने जीवन के उठाये हुए कदम भारी-भारी लगने लगी थी. जिसमे वो खो जाने वाले थी. लेकिन एक दिन उस सिंदूर, मंगलसूत्र को उतारकर आझाद पंछी की तरह उड़ने लगी थी. उन सिंगार को देखकर केवल गुस्सा, दुःख पैदा हो रहा था. क्योंकि उन सिंगारो में वो नजर आ रहा था.

वो कह रही थी, “वो भी तो कितना बड़ा भ्रम था मेरे जीवन का. जिसे मै इन वस्तुओ से पूरा कर रही थी. अब यह वस्तु कुछ नही लगती मेरे जीवन के सामने, इनका महत्त्व अब कुछ नही रहा, सिवाय इंसान के जो भी मेरे जीवन में आएगा. अब जो मौ हु वही रहने वाली हु. उसमे कोई बदलाव ना होगा. यह गहने, सिंदूर, मुझमे जगह कभी ना लेगे, क्योंकि यह जीवन की औरतो के लिए सबसे बड़ी मूर्खता भरी बात है. क्योंकि इससे केवल अपने आप में उस व्यक्ति के प्रती और भी आकर्षण, कभी नही छोड़ेंगे ऐसी वाली स्थिति मन में पैदा हो जाती है. बाकी औरतो को भी, इन चीजो में बाँधना याने की, हिंसा का दरवाजा खोंलने जैसा मुझे महसूस होता है. क्योंकि यह सबकुछ पहनने से, सामने वाले का जोर और भी दर्शाता है. यह चीजे केवल बांधती है”


लेकिन मन में इन चीजो के प्रती अब भी आकर्षण है. इसलिये शायद यह चीजे बचपने से देखते हुए आये है या मै औरत हु इसलिए. इसलिए इन चीजो के लिए आकर्षण के लिए ही रखते है. मन की कल्पनाओं में उड़ने के लिए छोड़ देते है अपने आप के साथ. 

Sunday 19 April 2015

आत्महत्या में डूबती हुई जिन्दगी...............

आज आत्महत्या के बारे में बातचीत अपने कुछ दोस्तों से हो रही थी. पता चला की अपने एक फेलोशिप के दोस्त ने आत्महत्या की, क्योंकि कुछ तो उसके मंगेतर के साथ झगडा हुआ तो कुछ कह रहे थे की, उसके माता-पिता ने शादी के लिए मना किया था. अखबारों में भी यह घटना लिखी थी. ऐसी बाते सुनकर केवल मन में चु......चु होता है. दूसरी तरफ मन में सवाल आता है की उसने क्यों आत्महत्या की, ऐसी इतनी कौनसी बड़ी वजह थी की उसने आत्महत्या की? ऐसे कई सारे सवाल उस व्यक्ती के लिए मन में चलती है. अभी हाल में ही किसी से पता चला की लड़की के शादी जबरदस्ती करने की वजह से शादी के तीन-चार दिन बाद आत्महत्या कर ली. उसके ही साथ अपने किसी पहचान वाले रिश्ते में, एक 15-16 साल के वर्ष के लड़की ने आत्महत्या की. कोई कहता है की उसके चाल-चलन सही थे.

इस तरह की आत्महत्या सुनकर लगता है, की उस व्यक्ती ने किसी को बताया क्यों नही? अगर ना बता पाते तो मरने का तो ना सोचते. अपने बारे में थोड़ा तो सोचते? लेकिन ऐसे वक्त में कोई भी सवाल जीवन के प्रती उनका आता नही. वे केवल मरने की सोचते है, हताश होते है, उस समस्या के वजह से वे मरने के अलावा कुछ नही सोचते? उनके लगता है की, वे उस समस्या का हल निकाल ही नही सकते. वो सवाल बाहरी जीवन का हो या अंदरूनी जीवन का हो. लेकिन छोटे उम्र के लोग इस तरह का कदम उठाते है उन्हें तो पता भी नही होता के वे क्या करने जानेवाले है वे गुस्से या धमकी देकर इस तरह का कदम उठाकर अपने जीवन को नष्ट कर देते है. 

ऐसे वक्त में केवल उनके मिले हुए लिखने, बोलने या वे अधिकतर अपने आप को चुप रख देते है इस तरह के इंडिकेशन से पता चलता है की वे  का आत्महत्या करने का सोच सोच रहे है. त्वरित इस पर एक्शन उठाने की जरूरत है जिस किसी भी को पता चलता है की वे ऐसा सोच रहे है. जो भी आत्महत्या करने की सोच रहा होता है, वो व्यक्ती कभी भी नही चाहता की वो आत्महत्या करे वो केवल परेशानी के वजह से इस तरह के कदम उठाता है. ऐसे वक्त में उन्हें पुरे मानसिक सपोर्ट की जरूरत होती है. उन्हें यह दिलासा देने की जरूरत होती है की जो भी उनके जीवन में हो रहा हैं वो समस्या कुछ दिनों की मेहमान है. समस्या उनके जीवन पर हावी नही हो सकती. इस वजह से होगा की, वे ऐसा आत्महत्या का ना सोचते हुए वे केवल इन समस्या से सुलझाने की कोशिश करने पर लगे. 


बस कुलमिलाकर यही कहना है की इंसान खुद से अपने जीवन को ना छीने. मिले हुए जीवन को जिए, समस्या भले ही वे पूरी मिटा ना पाए लेकिन अपने किसी करीबी व्यक्ति के साथ बातकर करके कुछ तो हलका महसूस कर सकते है. समस्या को सुलझाने की मदद अपने किसी विश्वासु व्यक्ति के साथ कर सकते है. लेकिन जीने के उम्मीद को बचाए रखे.  

nh 4 हायवे पर जिंदगी.....................

मेरे जीवन का सफर फिर एक बार शुरुआत nh 4 हायवे पर शुरू हुआ है. जैसे परिवर्तन ट्रस्ट के वर्कर ने कहा की, मेरा परिवर्तन का अनुभव मुझे आगे तक ले जायेगा और यही होनेवाला है. क्योंकि मेरी मंजिल यही है. मुझे लोगो के साथ कम्युनिटी में काम करना पसंद है. इसमे शारीरिक श्रम और दिमागी तौर पर अपने आप को बहुत जागृत और सुदृढ़ रखना होता है. उसमे भी काम करने का इलाका अगर गाव् में मिल जाए तो क्या बात हो जाए. मुझे गाव में काम करना पसंद है. मुझे अच्छा लगता है यहापर रहना. मुझे एक नैसर्गिक जिदंगी मिल जाती है. इस नेचर के साथ अपने आप को भी ढोना मुझे अच्छा लगता है. मुझे जीवित रहने को उत्साहित करता है. कल ही मै एक गाव में जा रही थी, बाइक पर बैठे हुए जाते वक्त अपनी दोनों हाथो के तरफ पहाड़ी, खेत में टहलते हुए हरे रंग के पेड़, पौधे, देखने लायक थे. बाकी लगातार गाडी चल रही थी बिना किसी रुकावट की. एकदम साफ़ रास्ता. किसी भी तरह की आवाज न थी. केवल इस थंड हवा को महसूस करते हुए मेरा सफर जारी रहा. काम करते हुए इस प्रकृति का आनंद भी उतना ही ले रही हु. किसी के घर में जाओ तो मिटटी से बने हुए घरो में बैठना याने एसी में बैठने जैसा होता है. मटके के थंड पानी आस्वाद लेते हुए लोगो के साथ काम की बातचीत चलती है. उसके ही साथ आंगन में टहलते हुए छोटे-छोटे मुर्गी के बच्चे, कभी बिल्ली, और उसके साथ गाय-बकरी अपने जगह बैठी हुई घास खा रही होती है. उसी के साथ दूर-दूर तक दिखने वाला पहाडो को देखते हुए मन मे ख़ुशी, उत्साह काम करने के आ जाता है.


काम करते हुए मन के भीतर तो कई सारे सवाल, संदेह रहने वाला है. लेकिन मुझे इन चीजो से पार नही होना इनके साथ अब काम करना है. अपने हाथो को आगे बढ़ाना है, उन्हें काम करने के लिए प्रोत्साहित करना है. क्योंकि उनका पूरा कनेक्शन मेरे दिमाग से जुडा है. जितना मै काम करुगी उतना ही मेरा दिमाग तेजी से चलेगा. उतना ही वो विकसित होगा. जैसे इन उंगलियों का इस्तेमाल टाइपिंग के  लिए कर रही हु जो मुझे विचार करने के लिए प्रवुत्त करता है. फिर मै लिखने बैठ जाती हु. मेरी सोच चलती रहती है. और मै लिखती हु. 

Tuesday 14 April 2015

डॉ भीमराव आंबेडकर की जीवनी..........................

डॉ भीमराव आंबेडकर के बारे में जानो उतना ही कम है. उनके बचपन के अनुभव से लेकर देश का संविधान को बनाते हुए तक की उनकी कई सारी बाते है. उन्हें भी बड़े उपेक्षित वाली जिन्दगी जीने मिली थी. उनके जीवनी में मैंने पढ़ा था की, वे एक बार कही उनके माता-पिता के साथ टांगा में बैठकर जा रहे थे. जब टाँगे वाले को पता चला की वे “अपृश्य” है, तो उन्हें बिच ही रास्ते से टाँगे से उतार दिया था. वो दिन उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट था की इस ‘अपृश्य’ शब्द को जीवन से निकाल देना है. तब से उनका संघर्ष शुरू हुआ. उनके शिक्षा के कार्यकाल में भी उतनी ही अस्पृश्य वाली जिंदगी उन्हें जीनी मिली. जब कक्षा के अंदर पढ़ाया जाता था तब उन्हें कक्षा के बाहर बिठाया जाता था.

अगर देखा जाए तो उनका नाम भलेही कई सारे लोगो के भीतर न था पर उनका नाम उन बौद्ध बांधवों के मुह पर है. उनका जन्म दिन बड़े ही धूम-धडाके के साथ मनाया जाता है. शाम के वक्त उनके तस्वीरों को पुरे मोहल्ले, गाव से ढोल-ताशा (आजके जमाने में dj) बजाकर, नाचते-गाते हुए उन्हें घुमाया जाता है. घूम आ जाने के बाद, रातको गाव में खाना सभी को खाना होता है. कुछ लोग डॉ आंबेडकर के बारे भाषण और कुछ उनसे जुड़े गानों को गाये जाते है. बाकि 6 दिसम्बर भी उनके मृत्य दिन को याद करने जैसा होता है उस दिन दादर के चैत्यभूमी और नागपुर के दीक्षा भूमी में भी लोग की झुडं को देखने जैसा होता है. 

वे बड़े ही अर्थशास्त्रज्ञ रहे. उनके जीवनी में लिखा है की वे १८-१८ घंटो तक पढ़ते थे. उन्होंने तो पुरे भारत के संविधान के किताब में अस्पृश्यों के लिए मिलने वाले हक़ की बाते की है. जो शिक्षा, आरोग्य, न्याय, अन्य सरकारी सुविधाओं में उनकी भागीदारी अन्य लोगो से भी ज्यादा है क्योंकि उनकी पिछली जिन्दगी बड़ी ही हिन् थी. लेकिन अब लगता है जिन्होंने बत्तर जिंदगी जी है वे तो चले गए लेकिन अब जो पीढ़ी आयी है उनको ऐसे और वैसे भी सुविधाए सरकार से मिल रही है. लेकिन वे सुविधाए लोगो तक पहुचती नही वो अलग बात है. लेकिन लगता है की हर कोई इंसान है, हम सब इंसान एक जैसे है. उन सुविधाओं को धर्म के आधार पर ना बाटे लेकिन इंसान के जरुरतो के अनुसार मिले ताकि सारे ही सेम पेज पर आयेगे. उसमे कोई भी बड़ा-छोटा, उचा-नीचे वाली भाव ना होगी. लेकिन सबको समानता का अधिकार मिले यह भी तो डॉ आंबेडकर का ख्वाब था जिनको पूरा होने की जरूरत है.