Saturday 31 August 2013

काउन्सलिंग की प्रक्रिया इतनी लम्बी क्यों होती है?

क्योंकि तुम व्यक्ति को इस काबिल बनाते हो की वो खुद की जिदंगी को बदलने के लिए खुद पहले पहल करे | क्योंकि किसी को भी एक ही भेट में हम कह नहीं सकते की आपको ऐसे या वैसे रहना है, आपको यह करना है या वो करना है| इस तरह की बाधा व्यक्ति के जीवन में नहीं डाल सकते| क्योंकि वो पहले से ही अपने लोगो के साथ इसी प्रश्नों से झुझते है |

काउन्सलिंग में आये हुए तो वही लोग होते है| जो सबसे ज्यादा स्ट्रेस, गंभीर रुग्ण होते है| और वो जिनके पास पैसो की कमी होती है| अगर क्लाइंट औरत हो तो उन्हें तो डेढ़ सारे घर के काम होते है| एक सेशन ४५ मिनटों का होता है| एक पेपर में मैंने पढ़ा था की CBT में १०-२० सेशन होने की जरुरत है| पर इन औरतो को वक्त नहीं होता की वे आ पाए|  फिर तो समस्या वही की वही रहती है| अपर्णा मैम से एक बात पता चली की, कुछ समस्याए तो पहले मुलाकात में ही सुलझ जाती है| यह सुनके थोडा मन को सुकून भी मिला की चलो ऐसा भी होता है|

एक सोच आती है की जो लोग बहुत सारे पूर्वकल्पनाओं में रहते है जिन्होंने अपने उम्र के ३०-४० साल तक उन धारणाओं को रखा जिससे निकलना कितना मुश्किल होता है| इसलिए काउन्सलिंग के द्वारा उन्हें उनकी कल्पनाओं से निकालकर जिदंगी को नए सिरे से शुरुवात की जाती है| लेकिन इस धारणाओं को निकालना आसन नहीं है लेकिन CBT जैसे तकनीक इनमे काम आती है|

जरुर! यह प्रक्रिया लम्बी है लेकिन उसका इम्पैक्ट बहुत बहुत बड़ा है| जैसे की मै स्कूल में काम करती थी| उस वक्त हमारी सोच तो यही थी की हेडमास्टर को स्कूल के विकास के लिए बदलना है तो हम उन पर कोई भी अथॉरिटी को दर्शानी नहीं होती थी| उनके समस्याओं समझना, सुनना होता था बिना किसी विचारो को रखते हुए, पर हम स्कूल, बच्चे, किताबो के विचारो बताते हुए काम करते थे| इसलीये धीरे-धीरे हेडमास्टर, अध्यापक बदलते जा रहे थे| उन स्कूल में बदलाव दिखाई देता था| इस ही तरीके से काम लोगो के साथ भी है, बस कुछ-कुछ चीजे बदली है|


एक बात तो लगती है की सवांद यह बहुत तकलीफ और बड़ी लम्बी प्रक्रिया है| इसमें अगर हमने बात काट ली तो समझो की सवांद वहा ही ख़त्म हुआ| इसलिए हमारे कोर्स में सवांद पर बहुत ध्यान दिया है, उससे जुडी हुई बहुत सारी बाते हमें सीखते है और प्रैक्टिस भी करते है| मै सोचती हु की दुनिया में सुनने के लिए कोई नहीं है, actual हर कोई सुनता है और बोलता भी है| लेकिन जिस तरीके से सुनने की जरूरत है वो नहीं है| क्योंकि हमे बोलने के लिए इतने उतावले होते है की सुनना बस की बात नहीं| इसलिए सुनना इस बात को समझने को कोर्स के रूप में रूपांतर किया, ताकि हम जैसे बच्चे इसमें पढ़कर इस ही क्षेत्र में काम करे और अपने पेट को भरने के लिए भी व्यवस्था हो| कितना अजीब लगता है की, किसी को सुनने के लिए पैसे लेने पड़ेगे, पर क्या करे इसके अलावा कुछ काम भी तो नहीं है| मुझे लगता है की अगर मै काउंसलर बनू तो मुफ्त में ही लोगो की सुनु, और अपना पेट भरने के लिए कुछ अलग सोर्स का इन्तेजाम करू क्योंकि लोग ही ऐसे मिलेगे की उनके पास पैसे नहीं फीस देने के लिए, बच्चो के फीस जैसे तैसे भरते है, तो बोलने के लिए थोडीही कोई पैसा देगा?


बाकी टेक्निक्स या स्किल की बात करू उसके लिए काउंसलर को तो कोई खर्चा भी नहीं की स्किल्स या टेक्निक्स खरीदके लाओ, क्योंकि टेक्निक्स में तो सिर्फ कुछ शब्द और शरीर के कुछ भागो का इस्तेमाल होगा, तो सबकुछ नेचरल है| सिर्फ बुद्धिजीवियों के बातो का इस्तेमाल होगा, क्योंकि उन्होंने खुद प्रयोग किये है जिसे दुनिया में माना गया है| बस यह कोर्स सिखने के लिए रुपयोंकी, वक़्त देने की जरूरत है| मुझे तो लगता है की काउन्सलिंग तो बहुत ही आसन और सस्ती है| बस ध्यान से पढ़ना और समझने की जरुरत है| 

                                                                               १ सितम्बर २०१३ 

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