जिदंगी मै कितना कुछ है जिसे मै देख रही हु, समझ
रही हु| लेकिन मन तो मेरा बहुत मचलता है की क्या करू? कभी बहुत रो लेती हु, तो कभी
हस लेती हु| तो कभी चिल्ला लेती हु| लेकिन इस चीख में कितना कुछ छुपा होता है| गले
के सारे कंठ एक ही चीख में खुल जाते है| सर थोडासा भारी लगने लगता है|
जीवन की सच्चाईयों का सामना करना कितना कठिन
होने लगा है| सोमवार को मेरी भेट ऑब्जरवेशन होम में थी| वहापर जो बच्चे घरसे भागे
हुए, भिक मंगाते हुए, किसी ने चोरी, खून किया हो| ऐसे बच्चो को वहापर रखा जाता है|
वैसे तो लोगो के लिए ऑब्जरवेशन होम याने एक बच्चो का जेल है| लेकिन वहापर किसी भी
तरीके की शिक्षा याने फॉर्मल शिक्षा नहीं दि जाती लेकिन उसके कौशल्य, सोच पर काम
किया जाता है याने नॉन-फॉर्मल शिक्षा दि जाती है| बच्चो को ६ महीनो तक रखा जाता
है| बच्चो के माता-पिता बुला लेनेपर उन्हें छोड़ा जाता है| या बच्चो को किसी संस्था
के शेल्टर होम में रखा जाता है|
वहा के स्टाफ की और से जो मैंने बच्चो की एक-एक
करके कहानिया सुनी उससे तो मन बहुत सुन्न हो गया| उस वक्त लगा की जिंदगी ऐसी भी हो
सकती है| ऐसे लगता है की मेरी जिदंगी तो कितनी आसान है! तब पर भी हम कितने सारे
परेशानी में डूबे रहते है| इन बच्चो को तो पता भी नहीं होता की इनके साथ क्या होता
है|
अभी सोशल वर्क से काउन्सलिंग के शिक्षा में आने
के बाद बहुत कुछ परिवर्तन आया है| जब इतनी सारी घटनाए देखती हु, सुनती हु तो लगता
है की मैं क्या कर रही हु? मेरी इतनी शिक्षा होने के बावजूद भी मेरे हाथ बंधे हुए
है| मै इन लोगो के लिए कुछ नहीं कर सकती| लेकिन एक तरफ जिस शिक्षा से मै अब गुजर
रही हु, वो तो मुझे अंदर-ही-अंदर काफी परेशान कर देनेवाली है| मुझे लगता है की अभी
ही समस्या का समाधान होना चाहिए| लेकिन काउन्सलिंग यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो
समाधान उसी ही व्यक्ति की और से मांगती है ना की कोई ओर व्यक्ति उसमे सोचे और
सुझाव दे| काउन्सलिंग बहुत वक्त लेने वाला है पर उसके साथ उसका जवाब भी सही
देनेवला है|
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