Thursday 17 December 2015

CHILD LINE IN MY REALITY


कल एक family से मुलाक़ात हुई जो रैल्वे स्टेशन के stair case के उपर बैठी थी. लोग उस family को, आते जाते खाना-पैसे दे रहे थे. मैंने देखा तो उन्हें कुछ फल दिए, और कुछ देर के बाद मैंने चाइल्ड line को फोन किया तो उनके वालंटियर्स आ गए. उस औरत से बात की. और यह निर्णय लिया गया की, किसी एक बच्चे के लिए अस्पताल जाना जरुरी था. लेकिन उस बच्चे के पिताजी से माँ को परमिशन लेनी जरुरी थी. वे तो मना करने लगे थे की, बच्चे को अस्पताल नही लेना जाना (क्योंकि उनका रोजमर्रा कमाई के उपर असर हो सकता है, जब की सच्चाई थी). लेकिन उस बच्ची के पिताजी के थोड़ा सा बताना ही पड़ा, उसके साथ साथ रास्ते पर चलनेवाले कुछ लोग पिताजी को समझा भी रहे थे उन्हें. तो वो मान गए. उन्हें child लाइन के जरिये नायर हॉस्पिटल के स्टाफ ने उस बच्चे की ट्रीटमेंट शुरू की. अब उस बच्चे को चार हफ्ता एडमिट करने के लिए कहा गया है.

इस बच्चे के बारे में कहा जाए तो यह बच्चा एकदम से, कुपाषित थी. उसकी उम्र तो करीबन 3 साल की है. लेकिन दिखने के लिए जैसे की, 6-महीने का बच्चा हो. उसका वजन किया तो वह सात किलो और तीनसो ग्राम निकला. जब की तीन साल के बच्चे का वजन 15-20 के करीब होना चाहिए. उस बच्चे को जब मैंने गोद में उठाया था तो उसके केवल हड्डिया मुझे छूह रही थी. तो पता चल रहा था की इस बच्चे की हालात कितनी क्रिटिकल थी. 

इन सब काम में child लाइन के स्टाफ काफी विश्वसनीय मुझे लगे. अब तक केवल उनके बारे में सूना था, लेकिन उनका काम प्रत्यक्ष रूप से रात के बारा बजे तक मुझे देखने के लिए मिला. वे लोग काफी कैरिंग दिखे, उनकी लगातार इस family के साथ काम चल रहा था, तो बच्चे को रस्ते से उठाकर से लेकर अस्पताल में भर्ती होने तक और उसके आगे भी इस चार हफ्ते में उनकी सारे जरुरतो का ख्याल करने वाले है.

उसमे भी एक वालंटियर Childline की, यह कह रही थी की, वो केवल बच्चो के लिए कम करते है लेकिन माँ और पिताजी का खाने की जिम्मेदारी वो अपने घर से करेगी. यह सुनकर बहुत अच्छा लगा. यह मेन हीरो तो इस ऐसे जगह पर भी है. उस पुरे स्टाफ ने काफी रात के 8:30 से लेकर 12 बजे तक वो इस family के साथ रुके थे. उनके खाने, बच्चे के दवाइयों का इन्तेजाम उन्होंने उसी वक्त किया. कुछ एक वालंटियर का निकलने का समय हो गया था, तब पर भी उन्होंने अपना पूरा वक्त बच्चे के एडमिशन होने तक रुके रहे.


Lots of thanks to this Child line volunteer and the people who were helping this family for the treatment of the child. 
आज तो एक कमाल की बात हुई. मेरे ऑफिस के colleague ने मुझे विक्रोली के हाईवे पर छोड़ने के बाद हुआ ऐसे की, मै स्टेशन की और चलने लगी. मुझे दो औरते ठहराकर पूछा की तुम मराठी जानती हो क्या? मैंने कहा की हां बताइये. “उम्होने कहा की उन्हें बेहद भूख लगी है. खाने के लिए पैसे नही है, आज या कल से मुंबई में आये है. उनके बच्चो को मिलने के लिए जो अब पेंटिंग का काम करते है. लेकिन वे पुणे चले गए है. अब पैसे नही है. तो अब मार्गशीष महिना चल रहा है, उपवास है, तुम कुछ खाने के लिए दोगी तो तुम्हे बहुत पुण्य लगेगा. मैंने कहा की चलिए मेरे साथ रेस्टोरेंट में मै आपको खाना खिलाती हु. पर उन्होंने मना किया क्योंकि उनके पास अब गाव (अकोला जिल्हे में शेगाव में) जाने के लिए भी पैसे नही है. तो फिर मैंने उनसे पूछा की खाने के लिए होटल जायेंगे की मै आपको पैसे दू घर जाने के लिए. उन्होंने कहा पैसे दो, फिर मैंने कहा उन्हें की मै आपको 100 रुपये दूंगी. वो राजी हो गए लेकिन और भी पैसे मांग रहे थे, फिर मैंने कहा की इतने ही पैसे है. फिर उन्होंने कहा की ठीक है. रूपये लेने के बाद पूछा मेरे बारे में तो मैंने अपने बारे में कहने की शुरुवात की, “वैसे तो काम ठाने के सरकारी स्कूल में करती हु. मुंबई में रहती हु अपने परिवार के साथ, पुणे के जुन्नर तहसील में आलेफाटा गाव है. वे मेरा गाव नही जानते थे तो मैंने कहा की, मेरे गाव में संत ज्ञानेश्वर ने रेडा से कुछ वेद बुलवाकर लिए थे, तो उसी गाव से मै हु. उसके बाद वे काफी खुश भी हुए. और उन्होंने मुझे डेढ़ सारा आशीर्वाद दिया ऐसे कहकर की, मेरा सबकुछ अच्छा हो जाएगा. कुछ मीठे बोल भी सुनाये. इतना मस्त लगा मुझे उन्हें सुनकर. और फिर मैंने कहा फिर मिलते है शेगाव में. वो मुझे कह रहे थे की, मै उनके लिए संत मुक्ताई हु. न जाने वो ऐसे क्यों कह रही थी. जितना पढ़ा है संत मुक्ताई के बारे में तो वो संत ज्ञानेश्वर की बहन है. उन्होंने काफी श्क्लोक लिखे है. किसी चांगदेव नाम के व्यक्ति की भी गुरु थी.

तब लगता है की, एक भाषा लोगो के जीवन में कितना बड़ा कार्य करवाती है किसी की और से. अगर उस वक्त शायद मराठी ना पता होती तो शायद इतनी लम्बी बातचीत नही होती मेरे उन औरतो के साथ. कैसे एक भाषा अद्भुत तरीके से जीवन में काम करती है.


उसी में से सोच रही हु, भाषा सिखना इतनी नैसर्गिक प्रक्रिया है. और उसमे आजकल भाषा सिखने के लिए मार्किट में पैसे गिने जाती है. नैसर्गिक प्रक्रिया कीतनी मशीन की तरह हो गई है. छोडो इतना सोचोगे तो काम करना मेरे लिए मुश्किल है. जो अब मेरे हाथ में है उसे तो कर ही सकते है.