Thursday 29 October 2015

जिया जाए ना दुःख के बिना...................

आजकल औरतो के बारे में सुनते पढ़ते मन तो काफी परेशान हुए जाता है. कभी-कभी कुछ उसके सुझाव नजर आते है तो कभी मेरा मन अपने आप से निशब्द हो उठता है. क्या किया जाए ऐसे वक्त में समझ नही आता. बस उन्हें पढने तो कभी सुनाने के बाद में चुप सी हो जाती है. रातको सोते समय उनकी बातो को एक कार्यकृम की तरह रिकैप आखो के सामने तैरता है. उसके दुसरे दिन फिर वही औरते, लडकियों के शोषण, परेशानी की काहानिया. तो तो कभी अखबारो में पढ़ते हुए तो कभी उनके जुबानी कहानिया जिसे में कभी घंटो भर सुनती हु. rogers की तरह empathy, नॉन-judgmental attitude दर्शाती हुई. लेकिन जब में सामन्य जनता की तरह हो उठती हु तब मेरे मुह से केवल वास्तिविकता के शब्द हो उठते है, उस आदमी के लिए केवल गालिया और उस औरत के लिए केवल संघर्ष, स्वंतत्रता की शुरुवात करने के लिए कहती हु.

न जाने यह विषय मेरे आसपास क्यों घूम रहे है. इसलिए भी क्योंकि मैंने यहा पर औरतो के साथ काम कर रही हु. हर दिन में इन्ही कहानियों से झुंझ रही हु. क्या किया जाए इसके लिए समझ नही आता. तुम कहते हो लिखो. तो लिख रही हु. मुझे भी तो लिखने की जरूरत है. क्योंकि फिर मै अपने आप से बात करने लगती हु. अब कितना बात अपने आप से करुँगी या उन्ही औरतो की कहानिया अपने आँखों के समाने तैरती रहूंगी. उससे अच्छा लिख लो.

मै तो इन कहानियों को सुन रही हु लेकिन यह औरते तो हर दिन अपने जीवन से झुंझ रही है. वे चाहते हुए भी उन्हें बदल नहीं पाते. कुछ औरते बोलकर उन सारी परेशानी से दूर हो जाते है तो कुछ लोगो को केवल हर दिन के परेशानी से आदत सी हो जाती है. उन्हें दर्द तो होता है लेकिन तब पर भी यही सोचते हुए की यह तो हर दिन की दर्द और परेशानी है. तो चलता है. कुछ औरतो को पता होता है की उनके साथ जो भी हो रहा है वो पूरी तरीके से गलत है. लेकिन वो चाहते हुए भी उससे निकल नही पाते क्योंकि उनके पास कोई भी साधन या मदद नही है की वे इस हिंसा से बच पाए. कुछ औरतो के पास मदद तो होती है लेकिन किन्ही कुछ लोगो की वजह से वे चाहते हुए भी निकल नहीं पाते.

अपने दोस्त की एक आखरी लाइन सुनने के बाद की, “खामोशी से बेहतर है की बातचीत होती रहे”. इसकी जरूरत वाकई में मुझे लगनी लगी है. क्योंकि औरतो को सुनते-सुनते मन तो थक जाता है, परेशान हो जाता है. अच्छा है की उनके साथ कुछ नुक्से अपनाये जाए ताकि उन्हें पलभर के लिए सुकून मिले. वो कुछ पल के लिए जीवन की तमाम परेशानी से दूर हो जाए उस दस मिनिट के लिए. जैसे की कोई कुछ उनके जीवन की परेशानी बता रहा हो. उनके साथ कुछ रिलैक्सेशन तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाए. जब उनकी पूरी स्टोरी पूरी हो जाए. क्योंकि मै जानती हु मै उनके पति या उनके अत्याचार घरवालो से उन्हें छुड़ा तो नही सकती लेकिन जब वक्त आएगा तब जरुर मै यह करने का धाडस उठाऊंगी. उन्हे उनके जीवन को फिर एक बार सुंदर बनाने की कोशिश करेंगे जो उन्होंने बचपन में जी लिया था. लेकिन उस बचपन वाले जिदंगी में भी तो उन्होंने अनेक कष्ट उठाये है, बताती है कुछ औरते की कैसे उन्हें परेशानी खाने-पिने, पढने, रहने के लिए होती थी उनके माँ के साथ. तो वो सुंदर जीवन उन्हें उनके बचपन में भी नसीब न था. लेकिन मन करता है की उनके इस जवानी या बुढापे में तो उस जीवन को दिया जाये. लेकिन इस में भी दिक्कत है. जिन औरतो ने बचपन से हि दुःख अपने सर में ढोए है वे कभी भी खुश नही रहना चाहते क्योंकि जब तक वे उन दुखो को बार-बार नही लेगी या किसी और औरत को लेते हुए नही देखेंगी तब तक वे खुश नही रहेगी. जैसे ख़ुशी इंसान बार-बार मनाते है वैसे हि दुःख भी वो बार-बार मनाना चाहते है. वे उससे निकलने का नाम हि लेती. दुःख भी उनके लिए जरूरत बन चुकी है. वे अपने जीवन में कोई परिवर्तन नही लाना चाहती. अगर जब कभी उन्हें ख़ुशी देने की कोशिश होती है उस पल के लिए होती है लेकिन उसके कुछ देर बाद या दुसरे दिन वो फिर एक बार दुःख की राह देखती है. क्योंकि उसके बिना उन्हें चेन हि नही आता. वे चाहती है की दुःख भी हमेशा ख़ुशी की तरह उनके साथ रहे. उसके बिना जिदंगी, जिन्दगी नही होती. उनको हमेशा लगता है की दुःख लेने के बिना खुशिया आप मना नही सकते. इसलिए दुःख का बहुत बड़ा सहभाग है खुशियो के लिए. उसकी जरूरत हमें हमेशा होनी चाहिए.

कुछ बुजुर्ग औरते कहती है की, आजकल की लडकियो दुःख नही चाहिए. हमेशा ऐशोआराम वाली जिन्दगी उन्हें चाहिए. उसी में वे रहना चाहती है. दुःख नही देखती इसलिए जीवन कैसे भी बिताती है. बहुत सारा wastage करती है तो वो खाने, पिने, कपडे का हो. उन्हें पैसो की वैल्यू नही होती. वो आगे कहती है की, हमारे वक्त में हमें खाना नही मिलता था, किसी के घर में झाड़ू-पोछा करो, या दो घर के बर्तन माच के आओ उसके हि बाद खाना मिलता था. जब मैंने शादी की थी तब मैं केवल एक साडी पर इस घर में आई थी. ससुर मुझे कितना गालिया देता था, मै खाना नही देती हु ऐसे लोगो को बताता था, मुझे और मेरे सास को मारने के लिए दोड़ता था, घर के बर्तन बेचकर दारु पि लेता था. मेरे सामने वो नंगा हो जाता था. मैंने अपने सारे परिवार के लिए बहुत कुछ किया. मेरा पती दो शब्द भी कुछ ससुर को नही बोलता था. मिटटी और चटाई के घर में मैंने दुःख उठाए” इस तरह के जीवन के अनुभव यह औरते साझा करती है. यह अनुभव उनके मन में इतने बसे हुए है की उनसे उन्हें छुटकारा हि नही. वे अपने जीवन को अच्छे से बिता हि नही सकती ऐसे उनकी सोच हो उठती है. अगर उन्हें अच्छे आराम वाली जिदंगी भी मिले तो भी वे बाहर जाकर काम करेगी. घर के काम सुबह से लेकर रात के सोने तक करेगी.

कहते है की औरते भावनात्मक रूप से काफी स्ट्रोंग होती है. जिसका कोई भी सबंध नही है औरतो के साथ. क्योंकि भावनाये तो सबके साथ एक जैसे हि होती है. उसकी तीव्रता कभी ज्यादा –कम होना काफी स्वाभाविक होती है. तो वो किसी महिला की हो या किसी पुरुष की हो. नेचर ने भावनाओं को महिला और पुरुषो में एक जैसा हि तो बाटा है.

अब एक चीज तो मैंने मान ली है. अगर स्त्री को अपने जीवन को अस्तित्व के उपर काम करना है या अपना अस्तित्व को दिखाना है. तो पहले वो अपने आसपास के लोगो से दूर चले जाए. अपने जीवन को अपने तरीके से बिताए. उसके पहले उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता लाने की जरूरत है. वो एक बार आ जाए तो देखो बदलाव कितने तेजी से आता है. वो औरत उस बन्धनों से मुक्त, दूर हो जाती है. उसके बाद भी औरतो को सहना पड़ता है और भी कई सारी परेशानी से लेकिन देखा जा सकता है.



कैरियर/उच्च शिक्षा/पैसे की जरूरत..........................

आज की जिन्दगी काफी तरह –तरह के जीवन के खर्चो में गुजरने वाली है. खर्चा शब्द इसलिए यहा पर लिख रही हु क्योंकि खर्चा शब्द अब बढती हुई महंगाई से जुड़ा है. और निजी जीवन में लगने वाली चीजे भी काफी महंगी मिलने लगी है. उस गरज को पूरा करने के लिए हर व्यक्ति को आर्थिक रूप में मजबूत होना जरुरी है. उस आमदनी का सीधा जुड़ाव उनके चुने हुए कैरियर से है. कई सारे चीजो के लिए केवल और केवल खर्चे (ज्यादा से ज्यादा पैसो की जरूरत है). तो इस वजह से जब कोई विद्यार्थी कैरियर का चुनाव करता है उसमे वास्तविकता को नजर के सामने रखे. उसके साथ इंटरेस्ट को भी बरकरार रखना है. कैरियर अगर काम और उससे जुडा हुआ आर्थिक जरूरत से जुडी तो बेहतर है. ताकि उनके आगे की जिदंगी बेहतर हो पाए.

वाचा संस्था के बच्चे काफी करके बस्तियों में बसे हुए है. उन्हें वो हर दिन वही गटर की नालीछोटे-छोटे झोपडिया और आसपास का भरा हुआ माहोल जहा पर खुद का कोई स्पेस नहीवही बदबूवही हिंसा और अन्य बातो से बच्चे उलझे हुए है. तो ऐसे वक्त में लगता है की इन बच्चो को इन बस्तियों से जल्द से जल्द निकलने की जरूरत है. उन्हें अपने जीवन की शुरुवात किसी बेहतर जगह से करने की जरूरत है. जहा पर जीवन की सीख के साथ अपने कैरियर को बनाने की भी पढाई हो.

हमेशा लगता है की, जिस जगह से (बस्ती जैसे इलाके या संकुंचित वृत्ती के साथ रहने वाले लोग) बच्चे आये है पहले उन्हें वहा से निकालने की जरूरत है. तो उसके लिए यह ज्यादा जरुरी है की दसवी के बाद की पढाई की शुरुवात वे किसी ढंग के कॉलेज से करे जिसमे उन्हें काफी आनंदायी पढ़ाई और उसके साथ सिखने की ललक पैदा करनेवाली शिक्षासंस्था हो. उसके साथ यह भी बात जरुरी है की,  बच्चो को क्लास रूम लर्निंग के साथ-साथ कुछ ऐसे भी चीजे करने का मौका हो जहा पर वे अपने इंटरेस्टअपने बातो को रखने के लिए पूरा मौक़ा हो. तो उनके जीवन में उस पढ़ाई के दौरान कुछ भी हो जाए लेकिन वे अपने पढ़ाई को ना छोड़े. क्योंकि पढाई को आधा-अधुरा छोड़कर अगर वे फिर एक बार उसी जिदंगी में फिर से लौट रहे है तो उससे बचने के लिए वह संस्था उसे मदद करे जैसे की कोई हॉस्टल फैसिलिटी या आर्थिक रूप से आगे बढ़ने के लिए उसे कोई पार्ट टाइम नौकरी प्रदान करे ताकि वो अपने पढ़ाई को पूरी कर सके.

कैरियर के चुनाव में यह बाते भी जरुरी है की इन बच्चो के लिए उच्च शिक्षा बेहद जरुरी है क्योंकि छोटे-मोटे कोर्स करने से जीवन नहीं बनता शायद वे पैसे किसी एक कोर्स में मिल जाए लेकिन उसके साथ जीवन की शिक्षा वे अपने दोस्तटीचर और रोजमर्रा जीवन में सिखने मिलेगी. और एक बात भी बेहद जरुरी होगी की, जितना वे किसी विशेष कोर्स और उच्च शिक्षा को लेकर आगे बढ़ेगे उतना ही उनका ज्ञानकौशल्य बढेगा.  

वाचा संस्था का काम उन बच्चो के साथ है जिनमे से कुछ मध्यम वर्गीय है तो कुछ निम्नस्तर SES ग्रुप के है. उनके घरो में पढ़ाई के लिए पैसे की बात तो बेशक आती होगी क्योंकि उनके अभिभावकों के पास इतनी आमदनी नही है (शिक्षा को पूरा करने के लिए भी पैसे की जरुरत है) की वे उनके बच्चो के लिए पैसो का जुगाड़ कर सके (वैसे तो अब काफी सरकारी और गैर-सरकारी स्कालरशिप है जो बच्चो को पढ़ाई के लिए मदद करती है). और दूसरी लेबलिंग लड़की होने की नाते होती है की जहा पर उसके जीवन में पढ़ाई का ऐसा कोई महत्त्व नही होता. जिस वजह से लडकिया हमेशा से ही शिक्षा से अलिप्त होती है.

अगर लडको की बात की जाए तो, उन्हें पढने में ऐसी कोई समस्या नही आती क्योंकि वहा पर पूरी तरीके से स्वतंत्रता होती है. लेकिन जो लड़के लोअर SES है उन्हें आगे बढना बेहद मुश्किल है क्योंकि उनको घर की जिमेद्दारी थोपि जाती तो ऐसे लड़के ना चाहते हुए भी पढ़ नही सकते क्योंकि परिवार वालो के लिए बेटे ने अब घरेलु आर्थिक जरुरतो का काम हाथ में लेना होता है. तो ऐसे लड़के भी घर के जरुरतो को देखकर भी अपने कैरियर की शुरुवात करते है जहा पर उन्हें आमदनी अच्छी मिले.

Wednesday 28 October 2015

बस्ती में पानी की समस्या- बच्चो की जुबानी.....................


गिल्बर्ट हिल के बस्ती के कुछ लडकियों ने अपने मोहल्ले की कुछ समस्या लिखी है. उसमे उन्होंने पानी की समस्या सबसे ज्यादा से ज्यादा लोग परेशान है. जो हर कोई हर दिन झेल रहा है. उसी के उपर लडकियों ने उनके आँखों देखी अनुभवो को अपने लेखनी के जरिये बताने की कोशिश की है. 

अल्फिया और अन्य लडकिया कहती है की, हमारे बस्ती में, पानी की बहुत बड़ी समस्या है. सब लोग पानी को लेकर बहुत परेशान है. हम सब यह जानते है की पानी बारीश की वजह से नही आ रहा है. कही-कही पानी आता हि नही. तो वो लोग हंडा, कलश लेकर इधर-उधर जाते है. लेकिन अगर हमारी गली में पानी आता भी है तो कोई उसका सही इस्तेमाल नही करता. हर रोज पानी आने के बाद सभी लोग पानी आने के लिए मोटर (एक ऐसा साधन जिससे पानी बड़े तेजी से आता है) लगाते है. जिस वजह से हमारे घर में पानी नही आता. सभी अपनी मोटर  चालु कर लेते है. कोई भी एक दुसरे को पानी नही देता और अगर देता भी है तो झगडा करने के बाद. हर दिन, हर सुबह हमें एक नया झगड़ा, तमाशा देखने मिलता है. सभी लोग एक दुसरे को कुछ भी बोलते है. जिस की वजह बाकी लोगो को तकलीफ होती है.

इमतियाज कहती है की, अगर हम पानी सही इस्तेमाल करे और पानी को दुरुपयोग ना करे तो पानी भी बचेगा और सभी को पानी भी मिलेगा. अगर हम दस मिनट अपना पानी भर के बंद कर दे तो सभी के नल में पानी आएगा और सभी को पानी बराबर मिलेगा. सभी घरो में मोटर दोपहर के १२ बजे तक चालु रहती है. कोई भी मोटर बंद नही करता. सब अपनी मोटर चालु रखकर पानी को बरबाद करते है. पानी से गली धोते है. लेकिन कोई यह नही सोचता की अगर आज हमे पानी आ रहा तो हम उसका सही इस्तेमाल करे. अगर हम उसको बचायेगे तो कल भी तो हमें पानी आएगा. सभी यह कहते है की इस साल बारिश नही हुई तो इसलिए पानी नहीं आ रहा है. लेकिन अगर हम पानी का सही इस्तेमाल करे तो पानी भी आता है और किसी को तकलीफ भी नही होगी.

मुस्कान कहती है की, बारिश पुरे चार महीने आनी चाहिए थी लेकिन मुश्किल से एक महिना भी नही आ पायी. इसकी वजह से हमें पानी मिलने में बहुत कठिनाई हो रही है. लेकिन हम कुछ नही कर पा रहे है. पानी के लिए लोग तरस रहे है. गली-गली, मुहल्ले में पानी इधर-उधर से लेकर आना पड़ रहा है. मै चाहती हु की जो बच्चे-बूढ़े पानी से तड़प रहे है वो ना तडपे पर मै कुछ भी नही कर पा रही हु. लेकिन दुआ कर सकती हु की पानी अच्छे से हमारे घर में आये और कही से चमत्कार हो जाए की पानी आने लगे. बच्चे-बूढ़े ना तडपे. लेकिन काश ऐसा हो पाता. पानी कम आने की वजह से लोग अपने घरो में मोटर लगवा देते है. जिस की वजह से दुसरो को जरा भी पानी मिल नही रहा है. लेकिन आप सोच रहे होगे की दुसरे लोग भी अपने मोटर लगा सकते है लेकिन वह गरीब होते है. जिस की वजह से वह मोटर नही लगा सकते. ऐसे वक्त में उन लोगो को दूर जाकर पानी लाना पड़ता है. जिस वजह से कमर में दर्द होता है. गिर गए तो चोट लग सकती है. तो औरते अपने बच्चो ख्याल कैसे रखेगी? जिस डर की वजह से वह नही जाती. मै दुवा करुगी की सब के घर में पानी आये.

(उनके इस लेखनी को पढने के बाद मुझे लगा की, बच्चे जो मन में सोचते है या बोलते है वैसे का वैसा हि लिखते है. उसे पढ़ते वक्त लगता है की कितनी टूटी-टूटी बात करते है. लेकिन सुनते वक्त ऐसा लगता नही. बच्चो की इन बातो को पढ़कर लगता है की बच्चो का निरिक्षण, सोच लोगो के प्रति या परिस्थिति के प्रती काफी बारीक़ है. यहा से हि तो उनमे उन भावनाओं की नीव शुरू हो जाती है. उसमे भी अब ज्यादा जरुरी है बच्चे अब खुद से बाते करना शूर कर दे.

बच्चो के सवालों के जब जवाब मिलते है तब पता चलता है की प्रॉब्लम का सलूशन की कितना छोटा है. और ना हि समस्या बड़ी है. उन्हे पढने के बाद लगता है की, समस्या नाम की कोई चीज नही है. उनके बातो से केवल समस्या का समाधान यही है की, एकदूसरे को मदद करना, बन्धुप्रेम दर्शाना, समझदारी से रहना. बस इन बातो को अगर रोजमर्रा जीवन में इस्तेमाल करेंगे तो इंसानों को जीवन जीना कितना आसान होगा. जो भी बहिर्मुर्ख समस्या है वो समस्या ना लगते हुए उसका सीधा हल केवल इंसानों के एकदूसरे के समझना है. और उसके तरफ अपने जीवन को ले जाना है ताकि जीवन कितना सुकर हो जाए. उनके विचारों के लेखनी में मुझे किसी भी तरह के पूर्व धारणाये नजर नहीं आती वे केवल जो दिखता है उसके उपर वो समाधान खोजने की कोशिश करते है. उनके लेखनी में मुझे काफी इंसानो के साथ का कनेक्शन दिखाई देता है. बाकी उनके अंदर हि अंदर किसी मूल्य की नीव भरने की कोशिश हो रही है.)


वाचा के स्टाल पर कैरियर और जेंडर की बाते बच्चो के साथ.............................

वाचा संस्था में आने के बाद से मैंने उनके कई सारे कार्यक्रम में भाग लिए. कुछ प्रोग्राम लडकियों के सवालो से जुड़े थे तो कुछ कैरियर से जुड़े थे. काफी अच्छा भी लग रहा था क्योंकि बच्चो के साथ अब मेरा संवाद फिर से शुरू हुआ है. मैंने आखरी संवाद तो टीस के फील्ड वर्क के दौरान सरकारी स्कूल में काम करते वक्त किया था और अब वाचा में आने के बाद.

उनमे से कुछ कार्यकृम के अनुभव या लिख रही हु जो काफी इंटरेस्टिंग थे. तो कुछ वही दुखभरी, परेशान कर देनेवाली. लेकिन अनुभव तो अनुभव होते है. उसके अपने रंग-ढंग होते है. वो कभी ख़ुशी और दुखी देनेवाली होते है. तो बात करते है वाचा के कार्यक्रम के कुछ अनुभव के बारे में.

खिले और हतोड़ी का खेल

जेंडर और हेल्थ मेले के नाम के एक स्टाल था जहा पर हतोड़ी और खिले रखे हुए थे. जिसमे लडकियों को हतोड़े का इस्तेमाल करते हुए एक लकड़े पर खिले ठोकने होते है. इसमें दो स्टूडेंट के बिच हमने स्पर्धा भी रखी थी जिसमे कोई बक्षिस न था पर लडकियों को यह सन्देश देना था की वे इस तरह के काम भी अपने हाथो से कर सकती है. यह काम केवल अब्बू, भाई, फूफा का नही बल्कि औरते, लडकिया भी यह काम खुद से कर सकती है. लडकिया इस स्टाल पर बहुत आनंद ले रही थी. कोशिश यह है की उनके विचारों में यह भी विचारों का प्रवेश हो.

कुछ लडकियों को मैंने सवाल किये की उनके घर में, हतोड़ा, खिले है तो उन्होंने कहा की है. उसके आगे पूछा की, कौन इस्तेमाल करता है यह चीजे तो उन्होंने जवाब दिया की, “अब्बु”. तो मैंने कहा की क्या आप भी इस्तेमाल करते हो तो उन्होंने कहा की नही. उसके आगे कहा की आज इस काम की शुरुवात यहा से करे और घर जाने के बाद जब कभी जरूरत पड़े तो खुद को इस काम को करना है.

कैरियर मेला – नववी/दसवी के बच्चो के लिए

दाउद बाग़ नाम के स्कूल (नववी और दसवी के बच्चो के साथ) कैरियर मेला देखने लायक था. बच्चो के साथ काफी मजा और उनके सवाल भी बेजवाब थे. उनके मन में सवालो की बोछार हो रही थी. वे हर स्टाल पर पूछ रहे थे. अधिकतर लडकियों को टीचर बनना था. वे जानना चाह रहे थे की उन्हें टीचर का कोर्स किस समय शुरू करना है? स्टाल पर ज्यादा करकर १० वी के बाद के डिप्लोमा/शोर्ट टर्म कोर्स थे. जो तुरंत १० वी के बाद करनी होती है. जहा पर वाचा की उनके कैरियर की नीव डालने की कोशिश थी. अच्छा लग रहा था जब मुझे बच्चे सवाल कर रहे थे. उनके कई सारे सवालों के जवाब देना उस वक्त मुश्किल था तो कुछ एक के सवालो के जवाब देना काफी आसान. कुछ एक सवाल जवाब न देनेवाले सवाल इस तरह के थे जैसे की, क्रिकेट सिखने के लिए क्या करना चाहिए? कुकिंग का कोर्स करना है तो क्या किया जाये? बाकी सवालों के जवाब देने आसान थे जैसे  की,  टीचर बनने के लिए क्या किया जाए? ड्राइंग में आगे कैसे बढे? डिप्लोमा क्या होता है?  टीचर बनने के लिए परसेंटेज कितने चाहिए होते है?
आर्ट के बारे में बताइये (बच्चो को बताना पड़ा की उन्हें वाकई में क्या जानना है इस स्ट्रीम के बारे में). इस तरह के सवाल थे. कुछ बच्चो के चेहरे को देखते हुए लग रहा था की वे जानते थे की उन्हें अपने जीवन में क्या करना है तो वे उसी स्टाल पर जा रहे थे. तो कुछ बच्चो के लिए कैरियर के सवालों के जवाब न पता होने जैसे था इसलिए वे हर स्टाल पर जा रहे थे.
यह लीगल ड्राइंग होती क्या है?
एक बच्चे ने एक सवाल पूछा था  मुझे की लीगल ड्राइंग क्या होती है?” तो मैंने उसे सवाल को विस्तार सेबताने के लिए कहा. तो वो बता रहा था की, “कुछ लोग एक दिल का चित्र बनाते है. जो अच्छा नही होता”. तो मैंने कहा की जो तुम सोचते हो या देखते हो अपने आखो से वो सबकुछ आप अपने चित्र में लाते हो. लेकिन जब तक आप किसी सामने वाले व्यक्ति और आपको परेशानी या कोई उलझन नही होती तब तक चित्र इल्लीगल या बुरा है ऐसे नही कह सकते है. वही लड़का ड्राइंग के बारे में काफी अछे तरीके से समझा रहा था की, चित्र जीवित रूप से दर्शाना चाहिए और वो चित्र बोलने वाली होनी चाहिए.
कोशिश यह थी की बच्चे विशेष कोर्स (specialization), उच्च शिक्षा शिक्षा का महत्व समझे. क्योंकि जिदंगी को वे केवल किसी आभास में ना जिए बल्कि रियलिटी ज्यादा जरुरी है. 
नववी कक्षा के एक लड़की के साथ मैंने इंटरव्यू लिया था. वह कह रही थी की वो टीचर बनना चाहती है क्योंकि उसने एक बार स्कूल में किसी टीचर को कुछ गलतियों को समझाते हुए देखा है. तो उस वक्त से उसे लगने लगा की वो भी टीचर बनकर बच्चो को एक सही राह दिखाना चाहती है. वो चाहती है की वो भी बच्चो को गलत करने से रोके, उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे. उसके आगे वो कह रही थी की वो गाव में रहने वाली है तो कुछ एक टीचर से जुड़े हुए कोर्स को करके, गाव में बच्चो को स्कूल में पढ़ाएगी. लेकिन वो काफी शिद्दत से टीचर बनने का सपना पूरा करना चाहती है.
कई सारी  लडकियों की रुची टीचर बनने के लिए थी. और उनमे से कुछ एक टीचर बनना चाहती थी. यह सारे कॉमर्स, आर्ट्स, और साइंस के स्टाल ऐसे लगे जैसे कोर्स बेचने वाले में से थे जैसे की सब्जियों, अन्य घरेलु चीजे की दुकाने होती है वैसे ही यह स्टाल भी एक दूकान का रूप धारण कर लिया था.

बाकी यह मेले मेरे लिए भी उतने हि यादगार रहेगे. क्योंकि मेरा डायरेक्ट सबंध बच्चो के साथ आ रहा था. मुझे भी बच्चो के साथ बातचीत करते हुए मजा आ रहा था. 

मैडिटेशन के साथ फिर एक बार मुलाक़ात............................

मेरे जीवन में मैडिटेशन का मौक़ा तीन साल बाद आया. आखरी मैडिटेशन हुआ था. उसके बाद अब Awaken Circle मैडिटेशन करने का मौका मिला. कई बार मन में चल रहा था की क्यों नही कर पा रही हु. इस तरह के ग्रुप सिटींग के लिए सोच रही थी लेकिन आखिर में मुझे मिल ही गया. कल लगा जैसे की अपने जीवन का श्रीगणेशा (शुरुआत) करने मिला. उसके दुसरे दिन अपने नए नौकरी (वाचा संस्था) की शुरुआत. सबकुछ मस्त भी लग रहा है. कल रात को आते समय ट्रेन में मुझे एक औरत मिली. उसके पास से मैंने कान की बुट्टीया खरीदी. जब निकलने का समय आ रहा था, मुझे उन्होने मेरे काम के बारे में पूछा. मैंने कहा की मै कल से एक नए काम की शुरुवात करने वाली हु. उन्होंने मुझे प्यार भरी दुवा दी और कहा की मेरे इस नए जॉब के लिए मै जरुर सफल हो जाउंगी. क्योंकि उसके पहले मुझे इस नए जॉब के लिए ऐसी कोई ख़ुशी नही मिल रही थी. लेकिन उस औरत के शब्दों के बाद लगा की कुछ तो मै जरुर इस काम में करने वाली हु. इसलिए इस नए जॉब का स्वागत करना है. ना की उससे मुह फेर देना है. दूसरी बात यह भी मुझे लग रही थी की, जो भी अब मेरे जीवन में हो रहा है याने की नौकरी लगना, मैडिटेशन के लिए ग्रुप मिलना, पाच दिन का पेड़ वोलंटरी काम खुला आसमान इस संस्था में, मम्मी के साथ बातचीत. इस सभी का सबंध मेरे जीवन से जरुर जुडा है क्योंकि यह सारे जीवन के अलग-अलग अनुभव मुझे अपने जीवन एक अंतिम उद्देश को साकार करने वाला है. जिसका अब मुझे पता है लेकिन अब उसे बताने के लिए ऐसे कोई शब्द नही है. लेकिन जिस दिन वो मुझे समझ आये तो उसके बाद उस बात को लिखने के लिया आ जाएगा

कल के मैडिटेशन में कुछ एक चीजे वाकई में नइ थी की उसमे मुझे कई सारी बारीकी चीजो का अहसास हो रहा था. मै उन हर बारीक बातो को मैने अपने जीवन से जोड़ा था. जिसकी मुझे बहुत ही जरूरत महसूस होने लगी थी. ग्रुप में एक व्यक्ति अपने एक सोच को बता रहे थे की, अगर हम अपने जीवन में नंगे हो जाए याने की जैसे है वैसे दिखाये तो उससे होगा ऐसा की, एक नैसर्गिक जीवन जीने मिल रहा है. कोई भी चुपा-चुपी वाला खेल ना होगा.


इस ग्रुप में आने के बाद उस कमरे की बाहर वाली जिन्दगी मानो है ही नही या उसका मेरे जीवन में ऐसे कोई महत्त्व ही नही है ऐसे लग रहा था. दुनिया के तामझाम से मुझे कोई मतलब ना था. जिन्दगी बहुत हि अच्छी और नजदीक लगने लगी थी. 


30 अक्टूबर 2015

Tuesday 27 October 2015

इंसान की बेबसी सब्जी मंडी में.......................

पिछले हफ्ते की कहानी है यह. शाम को ऑफिस से छुटने के बाद दादर स्टेशन से बाहर निकली सब्जी लेने के लिए. उस वक्त देखा की सारे सब्जी वाले भाग रहे थे अपने सब्जियों को गोनी में बांधते हुए. क्योंकि BMC की गाडी जो आ चुकी थी, उनके सब्जियों को उठाने के लिए क्योंकि वे बिना लाइसेंस से रास्ते पर सब्जी जो बेच रहे थे. ऐसे वक्त में इन बेचनेवाले और खरीदनेवाले का भी नुक्सान होता है. क्योंकि दादर की सब्जी मंडी एक ऐसी जगह है जहा पर सस्ते में सब्जी मिलती है. इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोग खरीदने आते है. सुबह से लेकर शाम तक वो सब्जी मंडी जागती रहती है. लेकिन जब यह bmc के अफसर अपने बड़ी गाडी कहू या कोई ट्रक लेकर आते है तब इन सब्जी वालों का समेटने का टाइम होता है. ऐसे वक़्त में उन्हें केवल अपने सब्जियों को छुपाने की जगह खोजते हुए भाग निकलते है. लेकिन जब ज्यादा सामान समेट ना पाने की वजह से भी वो गाडी आ पहुचती है और सब्जियों वालो की सब्जी छिनकर गड्डी में डाल देते है. ऐसे वक्त में सब्जी वाले हाथ जोड़कर अपनी सब्जी फिर से दे दो ऐसे विनंती उन अफसरो को करते है. लेकिन अनधिकृत सब्जी बेचने की लेबलिंग लगने के बाद कहा उन्हें अपना माल वापस मिलने वाला है. ऐसे वक्त में तो उनका केवल नुकसान हि होता है. और शाम को वे उनके घर लौटते हुए दिन की आधी कमाई ले जाते है, निराश होते हुए, आज का दिन अच्छा नही गया यह कहते हुए.

पर आते है एक ऐसी घटना पर जहा पर उस सब्जी बेचनेवाली औरत के बारे में. जब वो bmc का अफसर उसकी सब्जी छिनने आया तो पहले उसने उस अफसर को कितनी गालिया, शाप दिए की पूछो मत. उसे नहीं तो बल्कि उसके परिवार को भी शाप देने से कतराई नही वो औरत. वो अफसर तो उस वक्त मुझे ज्यादा दिन दिखाई दे रहा था. क्योंकि कहते है की गरीबो के शाप, दिए गए दुखो की हाय लगती है जिससे वो भी तो अनजान नही है. उसके कुछ देर बाद उस औरत ने अपने पास के केरोसिन के गैलन को अपने माथे के उपर डाल दिया और कहने लगी की, “मै मर जाउंगी:. वो माचिस ढूंढने लगी थी. लेकिन उसे नही मिली. ऐसे वक्त में कई सारी भीड़ जमा हो गई. उस अफसर के कुछ साथिदारो ने महिला पुलिस को बुला लिया. फिर उस औरत को पुलिस स्टेशन ले गए. उसके बाद क्या उस बात से मै अनजान थी. न जाने उसके बाद क्या हुआ.

उसके कुछ देर बाद जब घर लौट रही थी तब मुझे एक अपने स्कूल के वक्त का मुझे एक किताब की कहानी याद आई उसका नाम है, “चिखल” याने की जब बारिश की मिटटी एक हि जगह जम जाती है पानी की भीगने की वजह से जिसे हिंदी में कीचड़ कहते है. उस कहानी में एक खेती मजदुर अपने खेत के टमाटर बेचने मंडी चला जाता है.  काफी उत्साह के साथ वो बेचने लगता है. लेकिन कई सारे ग्राहक देखकर चले जाते है. लेकिन कोई खरीदता नही. वो अपने टमाटर के दाम कम-कम करते चला जाता है. लेकिन कोई भी खरीदता नही. शाम ढलने लगती है. लेकिन खरीदने वाला कोई भी नही.  उसका उत्साह पुरे से पुरे मिट जाता है. और आखिर में वो गुस्से से उस टमाटर के उपर नाचने लगता है. जिससे टमाटर का कीचड़ बन जाता है.


इतना बेबस कभी-कभी इंसान हो जाता है की उसे ऐसे वक्त में क्या किया जाए यह समझ नही आता. उसके पास कोई भी समाधान नही होता. ऐसे वक्त में वो केवल और केवल अपने उस दुःख, दर्द को निकालने के लिए इस तरह की हरकते करता है जो बाकी लोगो के लिए असामान्य, बुरी, माथेफिरू है.