Sunday 15 September 2013

TISS के स्टूडेंट्स और गणपति का त्यौहार

कल का दिन था ५ वे दिन के गणपती अनंत चतुर्थी| हमारे कॉलेज में भी स्टाफ कॅाटर्स के लोगो ने भी गणपती बिठाया था| उन्होंने सिर्फ ५ ही दिन बिठाया| शाम को गणपति जाने का समय था| टीस के स्टूडेंट्स अपनी पुरे दिन के लेक्चर को अटेंड करके बाकी का समय assignment, research को पूरा करने के लिए देते है|

लेकिन उसी ही दिन कॉलेज का गणपती भी निकल रहा था| थोडीही देर में टिस का माहोल फटाके और ढोल-ताशेरे के साथ मिल गया था| वहा पर सिर्फ ढोल की गुंज सुनाई दे रही थी, पढाई थोड़ी देर के लिए इस शोर ने ले ली थी| लायब्ररी में बैठे हुए स्टूडेंट्स थोड़ी देर के लिए बाहर आये थे, कोई खिड़की से झाक रहे थे| पैर, हाथ, गर्द हिलने लगी थी| चेहरे पर मुस्कुराहट, ख़ुशी के भाव थे|

कुछ बच्चो ने ढोल के शोर के साथ अपने आप को मिला दिया याने की खुद ही नाचने लगे थे| जैसे कहते थे है बेगानी के शादी में अब्दुला दिवाना! लड़के-लडकिया अपने आप को पढाई से हटाकर कुछ देर के लिए नाचने में गुम हुए थे| अपनी दिनभर की थकान को मिटा रहे थे|

बजाने वालो को भी काफी जोर था बजाने के लिए| स्टूडेंट्स एकदूसरे को प्रेरित कर रहे थे की वो भी नाचे| कुछ लोग तस्वीरे खीच रहे थे|

आने वाले समय में कॉलेज में महा-सत्यनारायण पूजा होनेवाली है| इससे दिखाई देता है की अपने भारतीय संस्कृति बढ़ावा दे रहे है| इससे और एक बात है की जो बच्चे अपना घर, लोग छोडके पढ़ने आये है उन्हें भी अपने यह त्यौहार मनाने के लिए मौक़ा मिला| जिससे एकदूसरे के प्रति प्यार, संस्कृति को साझा करने के लिए यह वक़्त अच्छा रहा है|

Monday 9 September 2013

रिश्तो की समस्या और औरते......................


याद है मुझे मै चुरू में गई थी शादी में. एक ही घर में चार शादिया होनेवाली थी, उसमे दो भाई और दो बहनों की शादी थी| पहले दिन बहनों की शादी थी, और दुसरे दिन भाईयो की. लेकिन भाइयो की शादी देख नहीं पाए, क्योंकि औरते लड़की के घर नहीं जाते|

दुल्हन घर आने के बाद, उन दोनों को घर में बिठाया गया| उनका घुंघट ओठोसे भी निचे था| हर कोई झाककर देख रहे थे| उसे मुह-दिखाई कहते थे| इतना क्या छुपा था उस मुह में की छुपाके रखा गया था|

बहुत बार लड़की की शादी होती है, उसे तो लड़के के घर जाना होता है? मेरा सवाल यह है की लड़का क्यों नहीं जाता? लेकिन गया तो भी उसे घर-जमाई कहा जाता है| इसलिए यह होना संभव नहीं है| लेकिन कई घरोमे मैने देखा है की वो लडकिया १०-१० साल तक वे अपने मा-बाप के घर नहीं जाती थी, वे हमेशा अपने ससुराल के लोगो के साथ ही संपर्क में रहती है|

भारत देश में हर तरफ रीतिरिवाज अलग तरह के है| शादिया भी अलग-अलग जगह में अपने तरीके से होती है|  कोई शादिया अपने ही मामा के लड़के या लडकी साथ होती है तो कई शादिया ऐसी होती की अपने ही मामा के साथ कर देते है| इस तरह के रिश्ते सुनते ही मन में अलग विचार शुरू हो जाते है की ऐसा कैसा हो सकता है? लेकिन जो रीतीया बरसो से चली आ रही है उसे वे लोग कैसे नकार सकते है| उनके लिए तो बहुत सामन्य बात है|

इस तरह के रिश्तो में लोगो का विरोध उतना ही जोरदार होता है| जैसे की खाप पंचायत की बात करे तो एक ही गाव में लोगो ने शादी की और गाव के ही लोगो के विरोध दर्शाते हुए उनकी हत्या भी की|

मैंने अभी ही सुना था, की बाप ने अपने लडकी से शादी की और उन्हें अभी बच्चे भी है| तो इस तरह के रिश्तो को देखते हुए लगता है की रिश्ते नाम की चीज है ही नहीं, उन्हें तो समाज में शांति प्रस्थापित रहने के लिए बनाये है| हकीकत में तो इसके कोई मायने नही है| तो क्यों इतने रिश्तो में उलझो?

जब विरोध दर्शाने की बात आती है तो लगता है की सारी उलझन सेक्स को देखते हुए होती है जो लोगो के लिए इस तरह के रिश्तो में अपवित्र है| क्योंकि सेक्स तो उस ही व्यक्ति के साथ हो सकता है जो जिससे तुम शादी करते हो और उसके साथ पहले कोई भी रिश्ता ना हो| लेकीन जो रिश्ता है जैसे बाप-बेटी, लड़की-लड़की (दोस्त), मा-बेटा इत्यादी रिश्तो में यौवन सबंध हो ही नहीं सकता? तो इस तरह के रिश्ते बन जाते है तो उसे अपनाने के लिए तो कई सदियो का इन्तेजार करना पड़ेगा|



Saturday 7 September 2013

तामझाम और उसमे फसी हुई औरते

पिछले दो दिनों से हमारे यहाँ शादी का माहोल चल रहा हैवैसे तो शादी है गुजराती के घर कीउन्हें हमारे यहाँ के लोग छैया” कहते हैजिस घर में शादी हो रही हैवे सिर्फ हमारे बगल के घर मे रहते हैमतलब उनके घर की दिवार और हमारे घर की दिवार एक ही हैघर के सामने मैदान में मंडप सजाया हुआ हैजहा पर रातको औरते गुजराती में गाने गाते है और उस गानो में तो बहुत सारी गालिया दी जाती है और वो भी दुल्हे की माँपिताभाईदेवरानी या जेठानी के नाम लेते हुएउसमे लोग मजे लेते है|
आज तो पार्टी थीवैसे तो शादी कल है आज दुल्हे की मा और सारे घर वाले उसके भाई के घर जाते हैवहां पर भाई याने दुल्हे का मामाबहुत सारे सोने के जेवरकुछ घरेलु सामानकपडे देते हैइस गतिविधि को, “मामेरू” कहते हैमैंने सुना की कोई लोग तो २० लाख तक का सामान देते हैपता नहीं इनको कितने रुपयोंका मिला|  उसी के साथ रातको DJ है इसमें तो आधी chawl के लोग नाचने तथा देखने आयेंगे मेरी दोस्त आरती इस DJ को चाँदनी बार” कहती है देखो अभी तो कुछ देर के बाद मेरा घर तो हिलने वाला होगा लोगोंको नाचते हुए देखने में तो मजा आएगा क्योंकि हर कोई अपने ढंग से नाचता हैआज तो बहुत सारी दारूबियर पि ली जाएगीऔर फिर कल लोग इसी जोश में शादी में जाने के लिए तैयार हो जायेगे |
इन लोगोंको के समाज में भी एक बात दिखाई देती है कीवे लडकियोंकी शादी जल्दी करवा देते हैक्योंकि उन्हें डर होता हैकी कई हमारी लडकिया किसी के साथ भाग ना जायेऔर दूसरी बात यही की सारे लोग सोचते है की लड्कियोकी शादी जल्दी करवानी चाहिए और एक बात देखि की इनके लड्कियो के किसी के साथ सबंध देखे तो वे तुरंत ही उसी या किसी अन्य लड़के से शादी करवा देते है|  हमारे chawl में एक लड़की को एक लड़के से प्यार थावे दोनों भी गुजराती ही है और एक ही चाली में रहते है मतलब दोनों का घर एक दुसरे के सामने ही हैतो उनके दोनों परिवार ने दोनों के शादी का निर्णय ले लिया अभी शादी को कुछ ५ से ६ साल ही हुए होगेउन्हें एक ३ से ४ साल की बेटी भी हैमनीषा अब शरीर से एकदम दुबली – पतली हैऐसा लगता है की वो बहुत बीमार है और मुह से लगता है की वो खुश नहीं है जैसे के मैंने उसे शादी से पहले देखा थाशादी से पहले वो बहुत खूबसरत लगती थीआज वो खूबसूरती उसमे दिखती ही नहीं|
वैसे तो मेरे अबतक का शादी-शुदा औरतो के लिए अनुमान यही रहा हैकी वे शादी के पहले से जो अपनी ख़ुशी वाली जिन्दगी जी रही थीशादी के बाद जिन्दगी बहुत उदासी से भरी हुईदुःख-दर्दपरेशानीबहुत सारे जबाबदारी से उलझे हुए इत्यादी पता नहीं शादी में ऐसा क्या है कीशादी के तुरंत बाद इतना बड़ा फर्क गिर जाता हैऔर यह फर्क मैंने ज्यादा करके शरीर ओर मन को देखते हुए महसूस किया हुआ हैअगर यह तकलीफ़ उनकी साथ वाली औरतों को बताये तो वो अपने साथ क्या हुआ उस बात को बोलने के लिए कुछ दिन के बाद भूल जाती हैऔर सिर्फ वे अपने पतिननंदसासपिताजेठदेवारानी-जेठानि और उनके बच्चे के भी बारे में ही बाते करती हैजैसे उसने ये कियाऐसे कियाउसका व्यवहार ऐसा है इत्यादि | शायद वो कहिना कही वो अपने दर्द को उसी बातों से कम करती हो बड़ी अजीब सी है यह औरतों की जिंदगी तब पर भी इतने सारी दुखों में कैसे भी करके जी लेती है 







एक पुरानी नौकरानी की यादे..................


अभी फिर से मैंने नौकरानी के डायरी को पढ़ना शुरू कर दिया| अब पढ़ते वक्त याद आया की मै भी कुछ दिनों के लिए किसी के घर नौकरानी थी| इसी शानो की तरह, मुझे भी उन सारी घर मालकिनो के लिए गुस्सा आता था | क्योंकि वो होती ही है वैसी| बहुत काम देने वाली| पैसे तो कम ही देती है, लेकिन काम इतना की, अपना घर का भी इतना ना हो| जिस घर में मैंने काम किया था, तब मै शायद ही १२ वी पढ़ती होगी| और उसके पहले भी एकदम बचपन में याने ५वी या ६ ठी में होगी तब माँ काम करती थी, और मै भी बरतन माचती थी | लेकिन जब मै माँ के साथ एक गुजराती के घर काम करती थी, तब वहा पर एक बूढी औरत थी, खाने पिने की लिए हमेशा आगे रहती थी| मैने उसके एक खाने की स्टाइल देखी  वो रोज एक ही सब्जी खाती थी, जैसे लौकी की सब्जी, रोटी जैसे हमारा मुकेश बनाता है, तो उस बूढी ने मुझे भी सिखाया था| तो यही उसका रोज का खाना होता था| खाना खाने के बाद, वह जब हाथ प्लेट में धोती थी, तब वह हाथ धुला हुआ पानी पी लेती थी| बड़ा अजीब था उसका हाल| मै सोचती थी यह बूढी कितना बचाती है | माँ तो बहुत ही हसती थी | उन घरो में काम करना वैसे तो मुझे अच्छा लगता है लेकिन एक ही बातकी दिक्कत होती थी की, उनके घर बड़े होते थे इस वजह से यह होता था की, पोछा तथा झाड़ू लगाने में बहुत समय और मेहनत होती थी| और थकान तो पूछो मत| और भूख भी बड़ी तेजी से लगती थी|
मैंने माँ के पास से भी घरो के किस्से सुने है| एक घर वो काम करती थी उसे चीनीवालानाम से पुकारती थी| क्योंकि उनका लास्ट नेम ही चिनिवाला था| जैसे एक घर मै वो काम करती थी, तो उसे पता था की सेठ और सेठानी के बिच में झगड़े थे, उनकी एक बेटी थी| जो बहुत खुबसूरत थी| जब वे दोनो घर पर नहीं होते थे तो वो कई लड़के दोस्तों को घर पर बुलाती थी| एक दिन तो उसने मुझे पास में बुलाकर कुछ कपडे और गहने पहनवाए जिसमे में खुबसूरत दिख रही थी|
हमारे यहाँ के कई पडोसी औरते घरकाम पारसीयोंके घरो में करती है| उन्हें वे नाम कंजूस देती है| क्योंकि वे कभी भी अपने नौकरानीयोंको कुछ नहीं देती, और उसमे भी पगार तो सबसे कम| तो यह औरते उन्ही बहुत सारे गालिया बकती है|
कुछ औरतोने तो काफी साल काम किया| तो वह मालकिने उनके समस्या में काम आती है| एक मालकिन ने तो एक नौकरानी के बच्चे के शादी के लिए पैसे तक दिए थे जिसे उन्हें लौटाने नहीं थे| जैसे की हमारे ही घर का उदहारण  है की, मेरी दादी, ने एक सेठानी के घर ४० साल तक काम किया| और जब दादी ने उसका काम छोड़ दिया तो उसके आगे के ज़िन्दगी के लिए हर महिना पैसे भी भेजती रही याने के दादी आखरी सास तक| एक दिन तो वह सेठानी तो खुद दादी को मिलने मुम्बई से पूना तक चली गई | जब की वह भी बूढी है|
तो इस तरह की यह बड़े लोगोंकी कहानिया है जिनमे से कुछ देवता निकलते है जो मरते दम तक साथ देते है| तो कुछ बहुत बुरे जिन्हें उनके नौकरानियो का कुछ लेना देना नहीं| उन्हें बस काम से मतलब है


औरते काफी सहनशील होती है.......................................


वे जो भी अपने जिंदगी में करती है तो उसे वो दस बार सोचती है| की मेरे पति, पिता, बच्चे और पूरा परिवार को अच्छा लगेगा की नहीं और उसके साथ साथ उसे इस समाज का भी डर तथा शर्म होती है की यह समाज क्या बोलेगा| तो इस लिए जिंदगी की इच्छा पूरी कर नहीं पाती| उस प्रक्रिया में उसे उस बातोका महत्व ही नहीं होता है की, खुद की इच्छा, आकांशाये, और जो जरुरी होता है तो वे सारी बातोंको कुछ पल में ही मार देती है| उसे धीरे धीरे ऐसे लगने लगता है की, मुझे इस तरह से रहना है जैसे, “अगर में खाना नहीं बनाउंगी तो इनका क्या होगा? अगर एक दिन बाहर खाना खा लिया तो क्या हो सकता है| (यह बाहर खाने की बात गरीब लोगोंके घर में तो कर ही नहीं सकते)

जब लडकियोंको पढ़ाया नहीं जाता क्योंकि, उन्हें घर पर काम होता है| क्योंकि उसके बिना घर चल ही नहीं सकता, तो प्रश्न यहा पर यह आता है की, जिनके घरोमे लडकिया नहीं होती तो उनके घर में काम कौन करता है? तो उनके घरमे तो वही औरत जो शादी करके आइ है, और तब तक काम करेगी जब तक वह बूढी नहीं हो जाती या फिर उसके बेटोंकी शादी नहीं होती|

उनमे तो स्वीकार वुत्ती उतनी ही स्ट्रोंग होती है जितनी  वे सहनशील है| मै यह बोलके औरतोको और दबा रही हु| पर में नहीं ऐसा कर रही हु क्योंकि, यह दो बाते उसके पास जन्म से लेकर ही है| जैसे की उसका प्रसूति काल, महावारी के दिन, भारी गहने तथा पोशाख जो वो शुरुवात से पहनते हुए आ रही  है,(पर अभी यह औरते नहीं करती अगर करती भी है तो फैशन के नाम से), समाज के बंदिस्त में जैसे, उचे आवाज से बात न करना, बडोंके पैर छूना, घर का काम उसके नाम, इत्यादी बाते महिलाओने अपने जिन्दगी में स्वीकारा है|

अब साल २०१३, जो है उन युवा पीढ़ी का जो सारे बंदिशोंसे पार हो के स्वतंत्रता के शिखर को छूने की कोशीश तथा उसे हर दिन जी रहे है| अगर वो उन्हें ना मिले तो काफी परेशान होते है| क्योंकि उन्हें ऐसे लगता है की, उनकी स्वतंत्रता छिनी जा रही है और फिर वो उसमे परेशान होते है, उन्हें काफी दर्द होता है| लेकिन फिर वे जागृति में आते है और फिर एक बार अपने जिंदगी को नए सिरे से देखकर फिर से उसकी शुरुवात करते है| क्योंकि उसमे एक आशा, उल्हास होता है की मुझे जीना ही है|

फेलोशिप ही चल रही है............................

मुझे अब लग रहा है की मेरी भी फेलोशिप ही चल रही है| काउन्सलिंग कोर्स में इमोशन, विचारो के बाते होती रहती है, की मै क्या सोच और कौनसी भावना मेरे दिल-दिमाग में चल रही है| विपश्यना में तो इसे प्रत्येक्ष भाव से देखने के लिए कहा गया है, की जो सोच और भावना पैदा हो रही है उसे जैसे की वैसा ही महूसस करे| उसके प्रति कोई भी विचार ना दर्शाए|

काउन्सलिंग में तो इसी को लेते हुए बात तो कर रहे है लेकिन उसके साथ-साथ कुछ दुसरे तरीके के टेक्निक्स की भी बात होती है, जिसमे हम अपने समस्याओ को नाकी ऐसे देखे लेकिन उन समस्याओ को सुलझाने के लिए भी निर्णय लेने की क्षमता काउन्सलिंग के द्वारा दि जाती है|


अब तो में यही सबकुछ सीख रही हु लेकिन कोर्स के अनुसार मुझे अपने विचार, समस्या को देखने की जरुरत है इससे भी ज्यादा यह की मै अपने आप को समझू, मै जानु की मै क्या विचार-सोच चलती है| मुझे एकाध घटना देखते हुए मेरे मन मै क्या चलता है? इत्यादी बातो को जानके के लिए यह कोर्स को जानने के लिए कोर्स काफी मददगार है| 

Friday 6 September 2013

सफर ट्रेन का.............

ट्रेन का सफर तो वैसे काफी आरामदायी होता है, और किसी दुसरे जगह में जल्दी पहुच पाते है| मुम्बई ट्रेन की बात करो तो काफी तकलीफ देने वाली है, लोगो की भीड़ तो सिर्फ देखने लायक होती है| ऐसे लगता है जैसे लोग युद्ध के लिए जा रहे हो| ऐसे भागते है जैसे उनके पीछे कोई लगा है और जैसे गाडी तो बस उन्हें अब छोडके ही जाने वाली है कभी ना लौटेगी| इस भीड में तो छोटे बच्चे, बुजुर्गो को तो सफ़र करना तो मुश्किल होता है|

आजकल महिलाए भी काम करने लगी है तो महिलाओं के लिए घर का काम उसके बाद बाहर काम करना तो रोज का युद्ध ही है और उसमे ट्रेन का सफर तो बहुत परेशान कर देनेवाला होता है| लेकिन मुंबई के लोगो के लिए तो रोज का ही सफ़र है| इसे वे झेल पाते है|

महिलाओं की बातो को सुनना तो मजेदार होता है, वे कई तरीको के बाते अपनी महिला मित्र से करती रहती है| आज ही सुन रही थी, एक महिला अपने दुसरे दोस्त से कह रही थी की, मेरी बच्ची तो खाना ही नहीं खाती, हम लोग उस दिन पार्टी में गए थे, उसने सिर्फ खाने में पापड़ खाए, घर आने के बाद अपने बेटी से कहा की तेरी लायकी नहीं है इस तरह के पार्टी में जाना, टमाटर का सूप तो पि लेती”, बच्चो के लिए कितना भी कुछ करू तो दिल जलने लगता है”| दूसरी वाली कह रही थी की आजकल, तो बाई (नौकरानी) मिलना कठिन होने लगा है”| इससे पता चलता है की, कपडे धोना कितना मुश्किल काम है वैसे तो घर के सारे लोगो के कपडे धोना तो वाकई में मुश्किल ही है|

एक लड़की फोनपर बात कर रही थी, सामने वाले से कह रही थी, “आज मा को मरे हुए, पाच साल हुए, पापा से कहा है की श्राद्ध करना है, किसी ब्राह्मण को खाना खिलाये और छत पर नैवेद्य दिखाए” पहले साल में जब नहीं किया था तो मा को कितना दुःख हुआ होगा” कैसे पता चलता होगा की मरे हुए लोगो को भी मरने के बाद दुःख होता है|

इतनी सारी डेढ़ सारी बाते होती रहती है| वे भी क्या करे की अपनी घर के दुःख घरवालो से कहना तो होता नहीं इसलिए फुरसत मिलते ही अपने महिलो मित्रो से बात करने का मौक़ा अच्छा होता है| वैसे तो ट्रेन में सफर के दौरान के यह वक़्त बात करने के लिए अच्छा ही होता है और समय भी कैसे निकलता है तो पता ही नहीं चलता| 


वैसे तो फर्स्ट क्लास के डिब्बों में बैठने वाली महिलाये, दुसरे डिब्बो में बैठेनेवाली महिलाओं से तुलना हमेशा करती है, जब भी कोई गलती से कोई महिला, बच्चे, अन्य लोग बैठ जाते है तो उन्हें पाहिले ही बताया जाता है की यह फर्स्ट क्लास का डिब्बा है| या फिर जब करते है तो उन्हें बैठने के लिए इनकार किया जाता है| 

Tuesday 3 September 2013

आज शाळे मधे ५ वीच्या मुलांनसोबत खुप छान वेळ गेला. मुलांना इंग्रजी खुप आवडत. त्यामुळे त्यांच्यासोबत इंग्रजीच्या सवांदाची पकड लागावी म्हणून घेत होते. त्यावेळस प्रत्येकी एक – एक जोड़ी बोलवून घेत होते, त्या जोडीमधे एक मुलगा व मुलगी ठेवले होते. त्या दोघांना दोन्ही प्रश्न विचारायचे होते. त्यावेळस त्यांच्यासमोर काही इंग्रजी मधे प्रश्न ठेवले, ते असे;
-         What is your name?
-        What is your mother?
-       What is your father name?
-       What is your brother name?
-        What is your sister name?
मुलांनी ते खुप चांगल्या रितीने केले, त्यामधे त्यांना मजा सुद्धा येत होती. जी मुले प्रश्न विसरत होती किंवा उत्तर द्यायला जमत नव्हते तर बसलेली मुले सुद्धा त्यांना सांगत होती. पण तो सवांद छान झाला.
त्यावेळेस एका सवांदामधे मुलाने मुलीस प्रश्न केला की, तुझ्या आईचे नाव काय? (इंग्रजी मधे). त्यावेळेस ती अगदी स्तब्ध झाली.


१३ जानेवारी २०१३



कक्षा ६ थी के बच्चो को बकरी के बारे में लिखने के लिए कहा गया था, तो बच्चोने काफी अच्छी तरीके से उसे लिखा| उनके जो भी रोज के अनुभव जो बकरी के साथ है तो उन्होंने कागज के पन्नो में साझा किया है|

बकरी हमारे लिए उपयोगी है| वह एक पालतू जानवर है| उसकी दो मोटी-मोटी आँखे होती है| बकरी को चार पैर होते है| बकरी मांस, गेहू, रोटी, बुर का पाला, बेर खाती है| बकरी खाने के बिना नहीं रह सकती| बकरी पानी पीती है| बकरी से बछ्डा पैदा होता है| उसका बच्चा दूध पिता है| बच्चा जब छोटा होता है तो वो खाना नहीं खाता है| वह बड़ा होने का बाद दाना, रोटी खाता है| वह दूध पिता है| वह बड़ा हो जाने के बाद खाना खाता है फिर वह दूध देने लगता है| बकरी के दूध से चाय बनाते है| हमारे घर के पास बकरिया है| बकरी के बच्चे के साथ खेलने के लिए मजा आता है| बकरी खाने के बिना नहीं रह सकती| बकरी से गोबर मिलता है| गोबर को खेत में डाला जाता है| जिससे फसल अच्छी होती है| बकरी को सुबह-शाम बच्चे चराने के लिए लेके जाते है| कभी-कभी वह दुसरे के खेत में चरने के लिए जाती है|  कभी-कभी बकरी दूर चली जाती है, तो हम उसे जोर से आवाज देते है तो कितनी भी दूर हो तो पास आ जाती है| बकरी को कुत्ते से डर लगता है| बकरी को बेचते है तो कुछ धन मिलता| पर बकरी को बेचना नहीं चाहिए| बकरी नहीं होती तो दूध कहां से मिलता? बकरी हमें बहुत पसंद है|


आनेवाले १० साल में क्या-क्या बदलाव हो सकता है?

विकास
आनेवाले १० साल में बहुत बदलाव हो सकता है| जैसे अभी २०१३ वा साल चल रहा है| मार्च-अप्रैल तक हमारी परीक्षा चलती रहेगी| फिर में बोखला पाल पढने चला जाऊगां| भुवाली स्कूल में, मै दो महीने का महेमान हु| मेरे पिताजी कह रहे है की, “८ वी कक्षा पास करके मेरे लड़के को बोखला पाल पढ़ाऊंगा|” और में भी यही चाहता हु| मेरे पिताजी कह रहे है की, कक्षा ९ वी में पढ़ेगा तो मेरे लिए सायकिल खरीदने वाले है, फिर तू सायकिल पर बैठकर जाना, ९ वी, १० वी तक सायकिल का इस्तेमाल करना होगा, ११ वी से १५ वी तक के शिक्षा में बड़ी गाडी खरीदूंगा जैसे मोटर सायकिल खरीदूंगा|” फिर ट्रेनिंग करके नौकरी करूँगा | २१ या २२ साल में शादी करूँगा|  

नरेंद्र
हम यह साल पास हो  शहर के विद्यालय में जायेंगे और वहा पढाई शुरू करेंगे| शहर में लोग साथ होंगे, वहा का परिसर अलग होगा|

मंजुला

हमारे घर में किसी की शादी हो सकती है| वैसे तो हमारे घर में सारे बच्चे पढ़ रहे है लेकिन तो भी शादी की बात चल रही है|  हमारे परिवार में कोई किसी से लड़ाई-झगडे नहीं करते| सब मिल-जुलकर रहते है| हमारे गाव में गेहू हो रहे है| अभी तो होली आनेवाली है| हम होली धामधूम से मनाते है और अनेक त्यौहार होते है जैसे दीपावली, रक्षा-बंधन, आदि| बरसात के दिन में हमको बहुत अच्छा लगता है| कभी तो बरसात बहुत होती है तो कभी होती नहीं| बरसात के दिन में हम छाता लेकर नदियों को देखते है| चारो तरफ हरियाली-हरियाली होती है| 

टेम्पो के बिना.................


१३ फरवरी २०१३  

आज कक्षा सातवी के बच्चो ने टेम्पो के सवारी के बारे में लिखा......................... 

अरविंद

टेम्पो २ लाख रूपये में मिलता है| सबसे पहले टेम्पो खरदीने के लिए पैसे कमाने पड़ते है| मेरा दोस्त पूछता है की, टेम्पो खरदीना नहीं है क्या? मै कहता हु खरदीना है| मै पूछता हु की टेम्पो में कितना सवारिया बैठ सकते है? वह बोला लगभग १५ सवारिया बैठ सकते है| फिर उसने कहा की, मै अब टेम्पो खरीद लूँगा और उसने लाल रंग की टेम्पो खरीद ली| खेरवाडा से बिछीवाडा तक का किराया ३० रूपये है|

अनीता

टेम्पो में बैठकर आते तथा जाते है| आते है हो तो सामान लेकर आते है| कभी-कभी टेम्पो में भीड़ होती है| अगर गाडी नहीं मिली तो पैदल – पैदल जाते है| बहुत बार बच्चे टेम्पो में रोते है| टेम्पो में बैठकर लोग कपडे सिलवाने जाते है|

ममता, मनीषा

टेम्पो हमारे लिए लाभदायक है| टेम्पो एक पुरानी तथा उपयोगी चीज है| हम कभी-कभी टेम्पो में बैठकर खेरवाडा, बोखला जाते है| टेम्पो के तीन पहिये होते है| टेम्पो के किराये का ७ रुपये देते है| वह रुका हुआ जाता है| टेम्पो वाला एक दिन के ५००-६०० रुपये कमाता है| भुवाली के टेम्पो बहुत सवारी लिया करता है| टेम्पो बस स्टेंड पर खड़ा होता है| टेम्पो में १५ सवारी लेके जाते है|

टीना

टेम्पो एक यातायात का साधन है| अगर टेम्पो नहीं होता तो हमारे लिए समस्या होती| जो रोजाना आते-जाते है तो उनके लिए तो बड़ी समस्या होती है| घुमने जाने के लिये टेम्पो की आवश्यकता होती है| हम टेम्पो की वजह से एक स्थान से दुसरे स्थान में जा सकते है| टेम्पो वाले लड़कियों को चिढाते है| अगर टेम्पो में पेट्रोल नहीं होता तो टेम्पो चलाने में क्या मजा आता? टेम्पो स्टैंड पर एक के पीछे एक टेम्पो के नम्बर लगते है| कभी-कभी, अलग – अलग रुट में नम्बर लगाने से दो टेम्पो वाले के बिच झगडा हो जाता है|


मणी, तमन्ना, गायत्री और कामिनी

पीले रंग की टेम्पो अच्छी लगती है| छोटे टेम्पो बोखला तक जाता है| टेम्पो टी-टी करता है| टेम्पो में छोटे बच्चोको बिठाते नहीं, पर उसमें खड़े हो जाते है| आजकल टेम्पो के पाच पहिये होते है| टेम्पो भी खाना खाता है, उसका खाना पेट्रोल है| वह टायर के बिना चल नहीं सकता| मुझे टेम्पो में जाना पसंद है| टेम्पो के ऊपर लिखा होता है की, “आकाश में गडडी उड़े आकाश के वास्ते, सडक पर टेम्पो चले सवारी के वास्ते...................”

बसंती

हम टेम्पो में बैठकर खेरवाडा, डूंगरपुर, उदयपुर, बिछिवाडा आदि स्थान पर जाते है| टेम्पो में बैठकर कर कही पर भी जाते है| टेम्पो में भीड़ होती है| कभी-कभी टेम्पो का एक्सीडेंट भी हो जाता है| फिर लोगोंको काफी चोट भी पहुचती है| कोई मर भी जाते है| सवारियोंको ठूस-ठूस के भरते है| टेम्पो में इतने सवारी भर लिए जाते है की, कही भी खाली नहीं रहता| कभी-कभी टेम्पोवाला दारू पीकर चलाता है| टेम्पो में गेहू ले जाते है| रस्ते में कही सवारी हो तो उनके के लिए हॉर्न बजता है और सवारी टेम्पो में बेठने के लिए दौड़ते-दौड़ते आते है की कही टेम्पो निकल न जाए| टेम्पो में बैठने के लिए नम्बर नहीं लगते| सवारी झगड़-झगड़ कर टेम्पो में बैठ जाते है| शाम को टेम्पो वाला सवारी लेकर एक-एक स्थान पर सवारीयोंको छोड़कर फिर अपने घर पर आ जाते है| सुबह से निकलने से पहले टेम्पो को अच्छी तरह सजाकर अगरबत्ती लगाते है| बहुत सजाकर लेकर निकलते है तो रस्ते में सवारी मिलती है|

किरण, निशा, मनीषा, शिल्पा और कमला

टेम्पो के तीन पहिये होते है| टेम्पो में हम खेरवाडा जाते है| टेम्पो में हम अपना सामान लाते है| टेम्पो नहीं मिलता तो हम पैदल-पैदल जाते है| टेम्पो के अलावा जिप और अन्य गाडिया हाय – वे पर चलती है| हम खेरवाडा में १० रूपये में जाते है| कभी-कभी टेम्पो बिघड भी जाता है| तो एक्सीडेंट भी हो जाता है| रात को जाता है तो लाइट भी नहीं चलती तो अँधेरे में चल नहीं सकता| क्योंकि वह रात में गिर जाता है|

राहुल, सुनील

टेम्पो रोड पर चलती है| टेम्पो में लोग मेहमान जाते है| टेम्पो से लोग आते समय सब्जिया –फल लाते है| टेम्पो में अधिक सवारी न बैठे| वाहन चलाते समय फ़ोन का उपयोंग न करे| वाहन चालते समय सरबत पीकर गाडी न चलाये ड्रायवर को पता नहीं हो तो आगे गाडी जाकर सामने से दुसरे गाडी को टकराती है|

उर्वशी

टेम्पो को सुबह सफाई करते है| उसे अगरबत्ती लगाते है| उसके बाद ही गाडी चलती है और तभी ही टेम्पो वाला सवारी लेता है| कभी-कभी टेम्पो बिगड़ता| है| टेम्पो वाला दारू पीकर चलाता है तो टेम्पो गिर भी जाता है| टेम्पो जब नहीं था तब लोक पैदल तथा टाँगे का इस्तेमाल करते थे| अगर सवारी एक टेम्पो में से दुसरे टेम्पो चले जाए तो झगडा भी हो जाता है| किसी-किसी टेम्पो में टेप भी चलता है| मजा आता है| कभी-कभी पुलिस टेम्पो को पकड़ भी लेते है|

वंदना, राकेश

हमारे घर में कोई चीज नहीं होती तो हम खेरवाडा जाते है| टेम्पो पेट्रोल पिता तभी तो चलता है| टेम्पो के पांच पहिये होते है| टेम्पो भुट-भुट करता है| टेम्पो के लिए हम “रुको” यु कहते है| टेम्पो में पाच सिट होती है| टेम्पो में हम बैठकर बहुत प्रसन्न होते है|

सुकना

टेम्पो बहुत उपयोगी चीज है| हम रोड क्रोस करके टेम्पो में बैठते है| वह टेम्पो रुक-रुक कर जाता है| किसी-किसी टेम्पो में गाना चलता है, उसे हम सुनते है| फिर खेरवाडा आ जाते है| कोई ७ रुपया तो कोई १० रुपया किराया देते है| और फिर हम सामान लेके वापिस जाते है|

आशा

टेक्सी नहीं मिलती तो टेम्पो में जाते है| खेरवाडा में हम ५ रूपये देकर जाते है| टेम्पो बहुत पुरानी चीज है| टेम्पो के आगे लम्बा हाथ किया जाये तो वो रुकता है|

करुना, मनीषा, सोनिया, सरला

अगर टेम्पो नहीं होता तो क्या होता? अगर टेम्पो नहीं मिलता तो हम पैदल-पैदल जाते है| हमें टेम्पो की बहुत आवशयकता होती है| जब टेम्पो में भीड़ होती है तो हम उसमे नहीं बैठ सकते है तो हम जीप में बैठकर जाते है| अगर टेम्पो नहीं होता हो खेरवाडा में जाने की आवश्यकता नहीं होती|  
अविनाश, अभिषेक

टेम्पो की रेंज १८० है| टेम्पो की चार सिट होती है| टेम्पो मै चलाना जानता हु और सिखा भी सकता हु| टेम्पो चलाने में बड़ी मुसीबत है| टेम्पो में दो ब्रेक तथा चार टायर आते है| टेम्पो तेज चलता है|

राहुल, महेंद्र

टेम्पो हमारे लिए एक अच्छी चीज है| वो डूंगरपुर या खेरवाडा ले जाता है| खेरवाडा से हम आलू, हरी सब्जी, टमाटर, रतालू, गोभी, मटर, मिर्ची आदी लाते है| जब कही जाना हो तो टेम्पो वाला पूछता है की कहा जाना चाहते हो? तो में बोलता हु के मुझे खेरवाडा जाना है| तो बातो-बातो में खेरवाडा आ जाता है| हम टेम्पो से उतरकर अंकल जी से पूछते है की, “आपके कितने पैसे हुए?”  अंकल जी कहते है की, ७ रुपये हुए है| फिर मै जेब से पैसे निकालकर उन्हें दे देते है|
हम बाजार गए तो दो पेन खरीदे| एक कॉपी खरीदी| अंकल जी को ३० रुपये दिए| १० रुपये की, पानपुड़ी खाई| मुझे रस्ते में दोस्त मिल गए तो वो पूछने लगे की, क्या करने आया हु? मै कहता हु की घुमने आया हु| फिर उसके बाद घर आया और घर आकर कुछ काम किया|

चन्द्रशेखर

टेम्पो सवारी बैठाने के काम में आता है| टेम्पो १ लाख रूपये में आता है| टेम्पो पैसे कमाने के काम आता है| टेम्पो में २० सवारी बिठाते है| कोई किराया ५ रूपये देता है तो कोई १० रूपये देता है| कई सारे टेम्पो वाले ५ रूपये में नहीं बिठाते है, वे १० रूपये लेते है|

अंजली

टेम्पो सभी सवारियों को लेके जाता है सभी नहीं मतलब टेम्पो में जितने सवारी बैठ सकते है इतने ही लेके जाता है| टेम्पो कुछ ज्यादा सवारी हो जाते तो टेम्पो सडक पर आता है तो टेम्पो वाला मेरे पास सवारी ज्यादा हो गए है यु करके उस टेम्पो में जितने सवारी बराबर बैठ गए तो दुसरे सवारियों को बैठने की जगह नहीं होती तो टेम्पो वाला अपना टेम्पो नहीं रुकाता है क्योंकि टेम्पो में सवारी ज्यादा हो जाते है तो टेम्पो पलटी खा जाता है, तो टेम्पो में बैठे हुए कुछ सवारियों में से कुछ लोग मर जाते है और कुछ घायल भी हो जाते है| कभी-कभी ऐसा भी होता है की, ९-१० सवारी जैसे होते है वैसे ही रहते है| कभी-कभी टेम्पो वाला सवारियों को यु बोलता है की, “सवारियों आओ तो वेलकम जाओ”| हम टेम्पो में बैठते है तो बहुत सुहावनी हवा लगती है मतलब गर्मियों के मौसम में जब टेम्पो बस स्टेंड पर खड़ा होता है, टेम्पो वाला तो लोगोंको को बोलता है की, “टेम्पो में बैठ जाओ”|

मनोहर

हम टेम्पो वाले को कहते है की, हमको खेरवाडा लेके जाओ, तो पूछते है की, की कितने पैसे लोगे? वो कहता है की, १ रुपया लेगा| वो कहता है की. चलो बैठ जाओ| हम बोलते है की हमें जल्दी जाने दो|” खेरवाड़ा आ जाता है| खेरवाडा से सब्जी, आलू, टमाटर, गोभी, टमाटर, भिन्डी, मिर्ची, केले, पपीता, बैंगन  और अंगूर, एक-एक किलो लेते है| अब क्या बाकी है? मीठी-मीठी लस्सी पीनी है| चलो पिलो, पीकर चल पड़े| फिर हम टेम्पो में बैठ गए, आधे रस्ते में ही टायर फुट गया| ड्रायवर जोर- जोर से रोने लगा क्योंकि  ड्रायवर का हाथ टूट  गया| फिर १०८ को फ़ोन करके उसे दवाखाना लेके गए|