Friday 30 August 2013

जिंदगी के जीने के मायने.............


फेलोशिप में आके जिंदगी के बहुत सारे पहलूओंको देखने, समझने मिला| हां जानती हु की दुनिया देखना और समझना बाकी है| इसलिए अब जिंदगी के वैसे ही निर्णय ले रही हु जिसमे करने के लिए बहुत सारी बाते हो| और दिमाग को भी व्यस्त और काम करने के लायक बना पाऊ|
एक बात तो मैंने सोची थी की ग्रेजुएशन के बाद कुछ काम करुँगी, फिर आगे की पढाई जारी रखूंगी| इसलिए उन दिनों में फेलोशिप में आने का फैसला मैंने कर लिया, वो भी एकदम सही समय पर क्योंकि फेलोशिप खत्म हो जाने के बाद मैंने सोचा की ग्रेजुएट विद्यार्थीयो को फेलोशिप में आने की जरुरत है, क्योंकि बहुत सारी बाते हमें पता नहीं होती की ग्रेजुएशन के बाद क्या किया जाए| तो ग्रेजुएट विद्यार्थीयो के लिए यही सही समय है की इस तरह के फेलोशिप में आके अपने आप को पहचाने, जाने, सोचे अपने जिंदगी के बारे में की क्या करना है?
फेलोशिप में आने के बाद इतना कुछ अपने जिंदगी के बारे में नहीं सोचा लेकिन जैसे ही हमारा प्रायवेट ड्रीम का टॉपिक शुरू हुआ वहा से ही अपने जिंदगी को मैंने काफी गंभीरता से देखना शुरू कर दिया| इसलिए अपने पढ़ाई के बारे में मैंने सोचा की उसके पास अब जाने की जरुरत है| फिर उसके लिए इसी तरह से तैयारी भी शुरू कर दी| तैयारी ढंग की होने की वजह से मेरा टाटा इंस्टिट्यूट में आगे एम ए के पढाई के लिए मेरा नंबर लग गया|और आज मै अपने इस फैसले से काफी खुश हु|
फेलोशिप में एक सबसे बड़ा फायदा हुआ की मुझे अपने इलाके से बाहर जाने के मौक़ा मिला| इससे बहुत कुछ देख पाई और लोगोसे परिचित हो पाई|इसलिए जिंदगी जीने के मायने भी समझ आ रहे थे|  राजस्थान, चंद्रपुर, ओरिसा जैसी जगह को देख पाई जिनके के बारे में किताबो में नाम पढ़ा था लेकिन देखने के उत्सुकता भी उतनी ही थी, लेकिन कब देखने मिलेगा ऐसा कुछ सोचा नहीं लेकिन फेलोशिप ने यह मौक़ा दिया | जो कृष्कुमार कहते थे की  बच्चे को अपने आसपास के चीज को देखकर वो दुनिया को जानता है और समझता है इसलिए शिक्षा सिर्फ किताबोसे नहीं बल्कि देखने,समझने,छूने से होती है|
आज घर आ जाने के बाद तो मेरे कॉलेज के कुछ प्रोफेसर तो मेरे इस चुने हुए रास्ते से तो काफी खुश है, मैंने अपने कॉलेज के प्रिंसिपल से भी फेलोशिप के बारे में बात की, उन्हें प्लेसमेंट सेल के द्वारा ग्रेजुएट स्टूडेंट को प्रोत्साहित करना चाहिए की वे इस तरह के अनुभव ले| जिससे वे अपने काम तथा अच्छे लगने वाले खुबियोंको को पकड़ पाए| इसलिए में सोच रही थी की BSW स्टूडेंट्स फेलोशिप जैसे अनुभव ले ताकि वे अपने कैरियर को चुन पायेंगे|
एक बात फेलोशिप में आके पता चली की अपने आप को संकुचित रखने से बहतु सारी बाते पता नहीं चलतीउसके लिए अपने दायरे को बढाने की जरुरत हैघर पर ही रहकेअपने ही लोगो तक रिश्ता स्तिमित करके जिंदगी पता नहीं चलतीउसके लिए बाहर निकलनेलोगोंको को मिलने की जरुरत हैजिससे हमें बहुत सारी बाते जिंदगी के बारे में जानने मिलती हैफिर जिंदगी बहुत बड़ी लगने लगती हैउसमे पता चलता है कीकितना कुछ देखना. जाननासमझना बाकी हैअब जिंदगी वाकई में बड़ी लगती है क्योंकिमुझे अब बहुत कुछपढना. सीखना बाकी है|
फेलोशिप में आने से पहले मै काफी अपने में ही जीती थी स्कूलकॉलेज में तो बहुत सारे दोस्त तो थे ही, लेकिन किसी के साथ बातचीत नहीं होती थीऔर कभी किसी को कुछ बताने की जरुरत भी नहीं लगीलेकिन जैसे ही फेलोशिप आने के बाद बहुत सारे लोग दोस्तभाईबहनटीचर मिलेइन लोगो के साथ बहुत सारे विषयो पर चर्चा होती थी जैसे शिक्षा, बच्चे की मानसिकता, लोगो की जिंदगी, गाव इत्यादि विषयो पर बातचीत होती थी| उसके साथ-साथ किताबे भी काफी पढ़े इसलिए आज किताबो से लगाव है|
फेलोशिप में मुझे विपश्यना और पर्सनल रिफ्लेक्शनयह प्रक्रिया काफी महत्वपूर्ण लगीक्योंकि इस दोनों प्रक्रिया में मैंने अपने पिछले जिंदगी के बारे में काफी सोचाजाना जिससे मै अपने बहुत सारे पुर्वकल्प्नाओसे बाहर निकलीजिससे अपने व्यक्तिगत जिंदगी में बहुत सारे परेशानिया हो सकती थीअब तो जिंदगीरिश्तेव्यक्ति  को देखने का नजरिया बदला है|
मैंने फेलोशिप के दौरान जो विलेज इमर्शन की प्रक्रिया में भाग लिया था तो वो बहुत ही सुंदर था| क्योंकि उस वक़्त मुझे परिवार की जरुरत का अहसास हुआ| क्योंकि बच्चे का संपर्क पहले उसके माता-पिता, दादी-दादा, काकी-काका और उसके अलावा बहुत सारे रिश्तो से उसका जुड़ाव हो जाता है, उनसे तो वो काफी कुछ सिख लेता है, क्योंकि वे सारे अनुभवी जो होते है, और तो और उन सब के साथ उसका प्यार, लगाव, भावनिक रूप से जुडाव् होता है| इसलिए जो सिख उसे मिलती है वो काफी जरुरी होती है| इसलिए मुझे अहसास हो रहा था की मै अपने परिवार से दो साल के लिए बाहर हु, लेकिन आ जो मै हु उसमे इनका बहुत बड़ा हाथ है| तो परिवार हर किसी को होने की जरूरत है, लेकिन मैंने ऐसे भी लोग देखे है जो अपने परिवार में ना रहकर भी उन्होंने अपनी जिंदगी बहुत सुंदर बनाई है, इसलिए इन दोनों पहलुओ का में एकदम अटल नहीं हु की परिवार होना या ना होना जरुरी ही है|
एक बात और देखने मिली विपश्यना के दौराना की जो चीज जैसी है उसे वैसे ही देखना उसमे यह था की हमारे में होनेवाली ख़ुशी, गम उसे अगर हम जैसे की वैसा देखोगे तो हम अपने जिंदगी को बहुत ही आसन तरीके से जी पायेंगे क्योंकि किसी चीज, व्यक्ति, परिस्थिति को देखने के बाद हमारे अंदर पहले हमारी भावना पैदा होती है उसके बाद हम उसपर प्रत्येक्ष रूप से रिएक्शन दिखाते है जिसकी हमारे जिंदगी में जरुरी नहीं है, क्योंकि हमारे भावनाए,हमारे आस पास के चीजे बहुत काल तक टिकने वाले नहीं है, क्योंकि चीजो का नाश और उत्त्पति होना तय है तो क्यों हम उसके पीछे माथापच्ची करे?इसलिए उनका कहना था की सबकुछ अनित्य है, permanant कुछ भी नहीं है| इसलिए अपनी जिंदगी में ज्यादा बहुत सारे बातो के पीछे मै नहीं पड़ती पर यह बात इतनी आसन नहीं है, लेकिन जो करने जैसा है उसे में करने की कोशिश तो करती हु|
दूसरी सोच से में निकल पाई वह यह है की जो हमारे महाराष्ट्र में हमारे मराठी भाई-बहन जिन लोगो को परप्रांतीय मानते है बल्कि वे भी इस भारत देश के हिस्सेदार है, बस हम सारे लोग अलग-अलग जगह से परिचित है, तो क्यों उन लोगो को अलग माना गया है? वैसे तो हमारे संवेधानिक अधिकार में तो हम यहाँ से वहा जा सकते है तो क्यो इतनी बंदी रखी है ? वैसे तो बायबल में मैंने पढ़ा था की, पर्र्मेश्वर ने यह प्रकृति तो हर किसी के लिये बनाई है तो क्यों इतना भेदभाव है इंसानों में? ये धरती, बारिश तो कभी नहीं कहती की तू मुस्लिम या ख्रिस्ती या बौद्ध है तो मेरे जमी या मेरे बारिश का आनंद मत ले? तो क्यों इंसान दुसरे से इंसान को कहता है की हमारे धरती पर कदम क्यों रखता है? 
आज जो मै हु उसका पहला श्रेय अपने माता-पिता, यह खुदा जिसने इस धरती के लोगोंको को जन्म दिया, उसके बाद मेरे मिस पालट जिन्होंने जिंदगी को सकारात्मक नजरियेसे देखने के लिए और पढाई में मेरी रूचि बढ़ाने के लिए हमेशा आगे रहे, उसके बाद मेरा निर्मला-निकेतन महाविद्यालय जिनके वजह से मुझे गाँधी फेलोशिप  के बारें में पता चला, और यहाँ से ही मैंने अपनी शिक्षा की शुरुवात की थी, जहा पर अपने महाविद्यालय के प्रोफेसर मिस मेहता, जिनसे मेरी हमेशा मुलाकात होती थी, तो उन्होंने भी मुझे जिंदगी के बहुत सारे पहलुओ को दिखने की कोशिश की और सबसे पहले मै खुद की जिंदगी को चुन पाई जिस लिए आज जिस मुकाम पर खड़ी हु, वहा मेरे खुद के परिश्रम और लगन की वजह से मै आज अपने जिंदगी को सुंदर बनाने के कोशिश में हु


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