Thursday 29 October 2015

जिया जाए ना दुःख के बिना...................

आजकल औरतो के बारे में सुनते पढ़ते मन तो काफी परेशान हुए जाता है. कभी-कभी कुछ उसके सुझाव नजर आते है तो कभी मेरा मन अपने आप से निशब्द हो उठता है. क्या किया जाए ऐसे वक्त में समझ नही आता. बस उन्हें पढने तो कभी सुनाने के बाद में चुप सी हो जाती है. रातको सोते समय उनकी बातो को एक कार्यकृम की तरह रिकैप आखो के सामने तैरता है. उसके दुसरे दिन फिर वही औरते, लडकियों के शोषण, परेशानी की काहानिया. तो तो कभी अखबारो में पढ़ते हुए तो कभी उनके जुबानी कहानिया जिसे में कभी घंटो भर सुनती हु. rogers की तरह empathy, नॉन-judgmental attitude दर्शाती हुई. लेकिन जब में सामन्य जनता की तरह हो उठती हु तब मेरे मुह से केवल वास्तिविकता के शब्द हो उठते है, उस आदमी के लिए केवल गालिया और उस औरत के लिए केवल संघर्ष, स्वंतत्रता की शुरुवात करने के लिए कहती हु.

न जाने यह विषय मेरे आसपास क्यों घूम रहे है. इसलिए भी क्योंकि मैंने यहा पर औरतो के साथ काम कर रही हु. हर दिन में इन्ही कहानियों से झुंझ रही हु. क्या किया जाए इसके लिए समझ नही आता. तुम कहते हो लिखो. तो लिख रही हु. मुझे भी तो लिखने की जरूरत है. क्योंकि फिर मै अपने आप से बात करने लगती हु. अब कितना बात अपने आप से करुँगी या उन्ही औरतो की कहानिया अपने आँखों के समाने तैरती रहूंगी. उससे अच्छा लिख लो.

मै तो इन कहानियों को सुन रही हु लेकिन यह औरते तो हर दिन अपने जीवन से झुंझ रही है. वे चाहते हुए भी उन्हें बदल नहीं पाते. कुछ औरते बोलकर उन सारी परेशानी से दूर हो जाते है तो कुछ लोगो को केवल हर दिन के परेशानी से आदत सी हो जाती है. उन्हें दर्द तो होता है लेकिन तब पर भी यही सोचते हुए की यह तो हर दिन की दर्द और परेशानी है. तो चलता है. कुछ औरतो को पता होता है की उनके साथ जो भी हो रहा है वो पूरी तरीके से गलत है. लेकिन वो चाहते हुए भी उससे निकल नही पाते क्योंकि उनके पास कोई भी साधन या मदद नही है की वे इस हिंसा से बच पाए. कुछ औरतो के पास मदद तो होती है लेकिन किन्ही कुछ लोगो की वजह से वे चाहते हुए भी निकल नहीं पाते.

अपने दोस्त की एक आखरी लाइन सुनने के बाद की, “खामोशी से बेहतर है की बातचीत होती रहे”. इसकी जरूरत वाकई में मुझे लगनी लगी है. क्योंकि औरतो को सुनते-सुनते मन तो थक जाता है, परेशान हो जाता है. अच्छा है की उनके साथ कुछ नुक्से अपनाये जाए ताकि उन्हें पलभर के लिए सुकून मिले. वो कुछ पल के लिए जीवन की तमाम परेशानी से दूर हो जाए उस दस मिनिट के लिए. जैसे की कोई कुछ उनके जीवन की परेशानी बता रहा हो. उनके साथ कुछ रिलैक्सेशन तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाए. जब उनकी पूरी स्टोरी पूरी हो जाए. क्योंकि मै जानती हु मै उनके पति या उनके अत्याचार घरवालो से उन्हें छुड़ा तो नही सकती लेकिन जब वक्त आएगा तब जरुर मै यह करने का धाडस उठाऊंगी. उन्हे उनके जीवन को फिर एक बार सुंदर बनाने की कोशिश करेंगे जो उन्होंने बचपन में जी लिया था. लेकिन उस बचपन वाले जिदंगी में भी तो उन्होंने अनेक कष्ट उठाये है, बताती है कुछ औरते की कैसे उन्हें परेशानी खाने-पिने, पढने, रहने के लिए होती थी उनके माँ के साथ. तो वो सुंदर जीवन उन्हें उनके बचपन में भी नसीब न था. लेकिन मन करता है की उनके इस जवानी या बुढापे में तो उस जीवन को दिया जाये. लेकिन इस में भी दिक्कत है. जिन औरतो ने बचपन से हि दुःख अपने सर में ढोए है वे कभी भी खुश नही रहना चाहते क्योंकि जब तक वे उन दुखो को बार-बार नही लेगी या किसी और औरत को लेते हुए नही देखेंगी तब तक वे खुश नही रहेगी. जैसे ख़ुशी इंसान बार-बार मनाते है वैसे हि दुःख भी वो बार-बार मनाना चाहते है. वे उससे निकलने का नाम हि लेती. दुःख भी उनके लिए जरूरत बन चुकी है. वे अपने जीवन में कोई परिवर्तन नही लाना चाहती. अगर जब कभी उन्हें ख़ुशी देने की कोशिश होती है उस पल के लिए होती है लेकिन उसके कुछ देर बाद या दुसरे दिन वो फिर एक बार दुःख की राह देखती है. क्योंकि उसके बिना उन्हें चेन हि नही आता. वे चाहती है की दुःख भी हमेशा ख़ुशी की तरह उनके साथ रहे. उसके बिना जिदंगी, जिन्दगी नही होती. उनको हमेशा लगता है की दुःख लेने के बिना खुशिया आप मना नही सकते. इसलिए दुःख का बहुत बड़ा सहभाग है खुशियो के लिए. उसकी जरूरत हमें हमेशा होनी चाहिए.

कुछ बुजुर्ग औरते कहती है की, आजकल की लडकियो दुःख नही चाहिए. हमेशा ऐशोआराम वाली जिन्दगी उन्हें चाहिए. उसी में वे रहना चाहती है. दुःख नही देखती इसलिए जीवन कैसे भी बिताती है. बहुत सारा wastage करती है तो वो खाने, पिने, कपडे का हो. उन्हें पैसो की वैल्यू नही होती. वो आगे कहती है की, हमारे वक्त में हमें खाना नही मिलता था, किसी के घर में झाड़ू-पोछा करो, या दो घर के बर्तन माच के आओ उसके हि बाद खाना मिलता था. जब मैंने शादी की थी तब मैं केवल एक साडी पर इस घर में आई थी. ससुर मुझे कितना गालिया देता था, मै खाना नही देती हु ऐसे लोगो को बताता था, मुझे और मेरे सास को मारने के लिए दोड़ता था, घर के बर्तन बेचकर दारु पि लेता था. मेरे सामने वो नंगा हो जाता था. मैंने अपने सारे परिवार के लिए बहुत कुछ किया. मेरा पती दो शब्द भी कुछ ससुर को नही बोलता था. मिटटी और चटाई के घर में मैंने दुःख उठाए” इस तरह के जीवन के अनुभव यह औरते साझा करती है. यह अनुभव उनके मन में इतने बसे हुए है की उनसे उन्हें छुटकारा हि नही. वे अपने जीवन को अच्छे से बिता हि नही सकती ऐसे उनकी सोच हो उठती है. अगर उन्हें अच्छे आराम वाली जिदंगी भी मिले तो भी वे बाहर जाकर काम करेगी. घर के काम सुबह से लेकर रात के सोने तक करेगी.

कहते है की औरते भावनात्मक रूप से काफी स्ट्रोंग होती है. जिसका कोई भी सबंध नही है औरतो के साथ. क्योंकि भावनाये तो सबके साथ एक जैसे हि होती है. उसकी तीव्रता कभी ज्यादा –कम होना काफी स्वाभाविक होती है. तो वो किसी महिला की हो या किसी पुरुष की हो. नेचर ने भावनाओं को महिला और पुरुषो में एक जैसा हि तो बाटा है.

अब एक चीज तो मैंने मान ली है. अगर स्त्री को अपने जीवन को अस्तित्व के उपर काम करना है या अपना अस्तित्व को दिखाना है. तो पहले वो अपने आसपास के लोगो से दूर चले जाए. अपने जीवन को अपने तरीके से बिताए. उसके पहले उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता लाने की जरूरत है. वो एक बार आ जाए तो देखो बदलाव कितने तेजी से आता है. वो औरत उस बन्धनों से मुक्त, दूर हो जाती है. उसके बाद भी औरतो को सहना पड़ता है और भी कई सारी परेशानी से लेकिन देखा जा सकता है.



No comments:

Post a Comment