Tuesday 27 October 2015

इंसान की बेबसी सब्जी मंडी में.......................

पिछले हफ्ते की कहानी है यह. शाम को ऑफिस से छुटने के बाद दादर स्टेशन से बाहर निकली सब्जी लेने के लिए. उस वक्त देखा की सारे सब्जी वाले भाग रहे थे अपने सब्जियों को गोनी में बांधते हुए. क्योंकि BMC की गाडी जो आ चुकी थी, उनके सब्जियों को उठाने के लिए क्योंकि वे बिना लाइसेंस से रास्ते पर सब्जी जो बेच रहे थे. ऐसे वक्त में इन बेचनेवाले और खरीदनेवाले का भी नुक्सान होता है. क्योंकि दादर की सब्जी मंडी एक ऐसी जगह है जहा पर सस्ते में सब्जी मिलती है. इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोग खरीदने आते है. सुबह से लेकर शाम तक वो सब्जी मंडी जागती रहती है. लेकिन जब यह bmc के अफसर अपने बड़ी गाडी कहू या कोई ट्रक लेकर आते है तब इन सब्जी वालों का समेटने का टाइम होता है. ऐसे वक़्त में उन्हें केवल अपने सब्जियों को छुपाने की जगह खोजते हुए भाग निकलते है. लेकिन जब ज्यादा सामान समेट ना पाने की वजह से भी वो गाडी आ पहुचती है और सब्जियों वालो की सब्जी छिनकर गड्डी में डाल देते है. ऐसे वक्त में सब्जी वाले हाथ जोड़कर अपनी सब्जी फिर से दे दो ऐसे विनंती उन अफसरो को करते है. लेकिन अनधिकृत सब्जी बेचने की लेबलिंग लगने के बाद कहा उन्हें अपना माल वापस मिलने वाला है. ऐसे वक्त में तो उनका केवल नुकसान हि होता है. और शाम को वे उनके घर लौटते हुए दिन की आधी कमाई ले जाते है, निराश होते हुए, आज का दिन अच्छा नही गया यह कहते हुए.

पर आते है एक ऐसी घटना पर जहा पर उस सब्जी बेचनेवाली औरत के बारे में. जब वो bmc का अफसर उसकी सब्जी छिनने आया तो पहले उसने उस अफसर को कितनी गालिया, शाप दिए की पूछो मत. उसे नहीं तो बल्कि उसके परिवार को भी शाप देने से कतराई नही वो औरत. वो अफसर तो उस वक्त मुझे ज्यादा दिन दिखाई दे रहा था. क्योंकि कहते है की गरीबो के शाप, दिए गए दुखो की हाय लगती है जिससे वो भी तो अनजान नही है. उसके कुछ देर बाद उस औरत ने अपने पास के केरोसिन के गैलन को अपने माथे के उपर डाल दिया और कहने लगी की, “मै मर जाउंगी:. वो माचिस ढूंढने लगी थी. लेकिन उसे नही मिली. ऐसे वक्त में कई सारी भीड़ जमा हो गई. उस अफसर के कुछ साथिदारो ने महिला पुलिस को बुला लिया. फिर उस औरत को पुलिस स्टेशन ले गए. उसके बाद क्या उस बात से मै अनजान थी. न जाने उसके बाद क्या हुआ.

उसके कुछ देर बाद जब घर लौट रही थी तब मुझे एक अपने स्कूल के वक्त का मुझे एक किताब की कहानी याद आई उसका नाम है, “चिखल” याने की जब बारिश की मिटटी एक हि जगह जम जाती है पानी की भीगने की वजह से जिसे हिंदी में कीचड़ कहते है. उस कहानी में एक खेती मजदुर अपने खेत के टमाटर बेचने मंडी चला जाता है.  काफी उत्साह के साथ वो बेचने लगता है. लेकिन कई सारे ग्राहक देखकर चले जाते है. लेकिन कोई खरीदता नही. वो अपने टमाटर के दाम कम-कम करते चला जाता है. लेकिन कोई भी खरीदता नही. शाम ढलने लगती है. लेकिन खरीदने वाला कोई भी नही.  उसका उत्साह पुरे से पुरे मिट जाता है. और आखिर में वो गुस्से से उस टमाटर के उपर नाचने लगता है. जिससे टमाटर का कीचड़ बन जाता है.


इतना बेबस कभी-कभी इंसान हो जाता है की उसे ऐसे वक्त में क्या किया जाए यह समझ नही आता. उसके पास कोई भी समाधान नही होता. ऐसे वक्त में वो केवल और केवल अपने उस दुःख, दर्द को निकालने के लिए इस तरह की हरकते करता है जो बाकी लोगो के लिए असामान्य, बुरी, माथेफिरू है. 

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