मुझे अब लग रहा है की मेरी
भी फेलोशिप ही चल रही है| काउन्सलिंग कोर्स में इमोशन, विचारो के बाते होती रहती
है, की मै क्या सोच और कौनसी भावना मेरे दिल-दिमाग में चल रही है| विपश्यना में तो
इसे प्रत्येक्ष भाव से देखने के लिए कहा गया है, की जो सोच और भावना पैदा हो रही
है उसे जैसे की वैसा ही महूसस करे| उसके प्रति कोई भी विचार ना दर्शाए|
काउन्सलिंग में तो इसी को
लेते हुए बात तो कर रहे है लेकिन उसके साथ-साथ कुछ दुसरे तरीके के टेक्निक्स की भी
बात होती है, जिसमे हम अपने समस्याओ को नाकी ऐसे देखे लेकिन उन समस्याओ को सुलझाने
के लिए भी निर्णय लेने की क्षमता काउन्सलिंग के द्वारा दि जाती है|
अब तो में यही सबकुछ सीख
रही हु लेकिन कोर्स के अनुसार मुझे अपने विचार, समस्या को देखने की जरुरत है इससे
भी ज्यादा यह की मै अपने आप को समझू, मै जानु की मै क्या विचार-सोच चलती है| मुझे
एकाध घटना देखते हुए मेरे मन मै क्या चलता है? इत्यादी बातो को जानके के लिए यह
कोर्स को जानने के लिए कोर्स काफी मददगार है|
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