Tuesday 26 May 2015

सपनो को भी आझादी पसंद है...........................


लेखक अश्विन बी शाह युवको को कहते है की, “सपना देखना यह उनका हक है”. उसमे किसी भी तरह का डर, चिंता नही है. क्योंकि किशोरावस्था में जो मन और शरीर में बदलाव आते है और उसमे जो भावनिक जरूरत महसुस होती है उसे पूरा करना उन दिनों में नही होता बहुत सारे अज्ञान, अपनी भावनाओ को छुपाने, किसी अपने भावनाओं को साझा न करने की वजह से. यह भावनाए सपनो के रूप में बाहर दिखाई देती है. उसमे कुछ भी बुराई या गलत नही है. उसमे वीर्यपतन तो होना ही है. प्रत्यक्ष रूप में सेक्स करो तो वीर्यपतन होता ही है तो सपनो में भी की जानेवाली क्रिया तो शरीर में दिखने वाली तो है ही?

जीवन के कोई भी सुप्त इच्छाए, कल्पनाये जब पूरी नही हो पाती तब वे सपनो में कही ना कही साकार होते हुए दिखाई देती है. उसके साथ सपनो में अपने मन के बातो को साकार होते हुए देखने का एक अलग ही आनंद है. उसमे केवल हम खुद होते है, उस आनंद को महसूस करते. वे सपने कब पुरे होगे यह पता नही होता लेकिन उसे उन दिनों में पूरा होते हुए देखते हुए एक आयडिया भी तो मिल जाती है की, अपने जीवन को आगे कैसे-किस तरीके से ले जाना चाहिए. आगे वे कहते है की, सपना देखना भी तो विनामूल्य होता है. तो उसे जितना चाहे उतना देख लो. वो और भी कह रहे थे की, अपने उन लैंगिक इच्छाओ को पूरा करना हो तो रात का समय अपने सुंदर नींद में देना ही उचित है.

सिग्मुड फ्रायड का कहना है की सपना देखना याने की आनेवाले जीवन के लिए संकेत है. यह सपने वो सपने होते है जिन्हें दबाकर किसी मन के कोने में रखा है जो सपनो में पुरे होने की कोशिश होती है.

वैसे भी नींद में चलने वाली सपनो का शो भी तो खुद को देखने जैसे होता है. वो इतना जीवित रूप में होता है की कई लोग सपने में बडबडाते है. उन सपनो का पूरी तरीके से आनंद उठाते है. यह सपने ऐसे होते है की जिन्हें जो पुरे होगे या नहीं वह नही पता था. लेकिन उसका आस्वाद लेने का मजा ही कुछ और होता है. इसलिए सपने बेभान देखो. उसे आनंद से जिओ. क्योंकि लैंगिक इच्छाए तो आनंद देणे वाली होती है. लेकिन कई युवक उससे परेशान होते है. क्योंकि उनका काम में मन नही लगता या फिर वे काम नही कर पाते तो ऐसे वक्त में उन्हें यही कहना है की, उसका आनंद उठाओ. जितना उससे भागोगे उतनी ही वे आपके पीछे आएगी. तो उसका स्वागत अपने जीवन में करो.  


अपने एक टीचर का कहना है की, जब आपको लगे की कुछ ज्यादा ही ख्यालो में डूब रहे है तो, अपने दिमाग के रेगुलेटर को कार्यन्वित करो याने की आप अपने सोच पर सोच सकते है. की जो भी मन में आ रहा है उसके बारे में सोचे, उन्हें रोकना यह केवल आपके हाथ में है. तो जब चाहे आप स्विच को on या off कर सकते है. तो है ना अपने दिमाग का कामाल!

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