Wednesday 18 February 2015

यह रिश्ते खोकले क्यों होते है?................................

“तुम जिदंगी भर मेरे साथ रहोगे. तुम्हारे बिना जिदंगी मुश्किल है. तुम खाना नहीं खाओगे तो मै भी नहीं खाओगी, तुम्हारे टेक्स्ट आने बाद ही सो लुंगी” इस तरह के वाक्य कई बार सुने है जो पार्टनर शादी शुदा है तो कुछ नहीं. इससे एक बात दिखाई देती है की वो एकदूसरे के उपर कितने निर्भर है. उनके बिना अकेला कुछ कर ही नहीं सकते. उनके जीवन के हर एक निर्णय को वो अपने पार्टनर के उपर थोपते है. या पार्टनर उसे स्वीकारे या ना स्वीकारने के बाद ही वे अपने जीवन में उस निर्णय लादते है.

कुछ पार्टनर ऐसे भी होते है की वे हर काम एकदूसरे के बिना कर ही नही सकते. कभी कभी ऐसा होता है, की वे अपने पार्टनर के साथ ही खाना खा लाते है. अगर वे कुछ कारण के वजह से खा नही पाये तो युही भूखा रह लेते है. वे उस वक्त अपने आप के जरुरतो के लिए पूरी तरीके से भूल जाते है. इन रिश्तो में अक्सर हिंसा, परेशानी होती है.
कई बार ऐसा होता है की वे एकदूसरे में इतने तल्लीन हो जाते है की, उनके आसपास क्या माहोल है उन्हें समझ नहीं आता. इससे कई बार लोगो को उन दोनों की परेशानी झेलनी पड़ती है.

एकदूसरे के लिए मन में इतना लगाव होता है की वे पूरा दिन अपने पार्टनर के बारे में सोचते रहते है. इसका असर उनके व्यावसायिक जीवन में होते हुए दिखता है. इसलिए सतत फोन करना, टेक्स्ट करना. जैसे की इस वक्त मेरा पार्टनर क्या कर रहा होगा. किसके बात चल रही होगी. खाना खाया की नहीं. खाया नहीं होती उसपर भी बहस होती है. अगर वो काम उस वक्त पूरा न हुआ तो उसके लिए जवाब मांगते है. इस वजह से दोनों में बहस भी हो जाती है. फिर दुसरा पार्टनर सामने वाले को मनाते रहता है, आगे से की ऐसी गलती नही होगी इस तरह के वादे किये जाते है. हालाकि उसकी कोई गलती नहीं होती. जिसके गलती नहीं उसे ही अपने बरताव पर गुस्सा, शर्मिन्दा होना पड़ता है. जो की नहीं होना चाहिए.

ऐसे रिश्तो में असुरक्षा का भाव बहुत हो जाता है. पार्टनर को हमेशा डर होता है की कही मेरी पार्टनर मुझे छोड़ ना दे. अगर छोड़ देगी तो क्या होगा? मै उसके बिना जी नहीं पाउँगा या पाऊँगी” इस तरह के विचारों से भी वे बहुत ही त्रस्त रहते है. अपने जीवन में और अपने पाटर्नर को भी जीने नहीं देते है. हर वक्त समय पूछते रहते है कब आओगे/आउंगी, किसके साथ रहते हो/रहती हु. कौन था वो? क्या बाते की? कितने देर तक बाते की? क्यों बाते की? कितने बार मिले? उस ही व्यक्ति को क्यों मिले? मिलने का कारण क्या था? किसी और को भी मिल सकते है? उसने डिअर क्यों बोला? उसने तुम्हारे कपड़ो/हसी/खाने की तारीफ क्यों की? और न जाने इस तरह के सवाल दुसरे पाटर्नर को सताते रहते है. ऐसा रिश्ता सिर्फ दबाव, असुरक्षितता का भाव जगाते है. वो रिश्ता खोकला हो जाता है.


इस तरह के रिश्तो में व्यक्तिस्वतंत्र पूरी तरीके से नष्ट हो जाता है. इसमें व्यकित के चुनने का अधिकार अनदेखा हो जाता है. इस रिश्ते की सुंदरता नष्ट हो जाती है. ऐसे रिश्ते को बीमारी लग जाती है. उसे जल्द ही दवाई की जरूरत है, बात करने की जरूरत है. ताकि उस रिश्ते को बचाया जा सके. कुछ रिश्ते में कॉन्ट्रैक्ट बनाने की जरूरत है. एकदूसरे के प्रती प्यार, आदर का भाव जगाने की जरूरत है. अपने पार्टनर उसका अपना स्पेस देने की जरूरत है. ताकि वे अपने पर्सनल ग्रोथ के उपर ध्यान दे पाए. अगर खुद किसी चिंता, परेशानी से जूझ रहे हो तो अपने पार्टनर के साथ बात की जानी चाहिए. अगर वो भी नही तो किसी बड़े व्यक्ति के साथ बात की जानी चाहिए. ताकि वे बिच आकर दोनों में समन्वय पैदा कर पाए. 

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