Monday 16 February 2015

स्कूल में काम करते वक़्त और अपने हर दिन के जीवन के अनभुव के अनुसार बच्चो से काफी बाते होती है. एक बात लगी बच्चो के साथ कोई भी sexuality के बारे में समझना की जरूरत नहीं. वो इन बातो को समझते है. गुप्तांग क्या होते है?, किसलिए होते है वो जानते है. उसके लिए उन्हें कोई sex education का पाठ पढ़ाने की जरूरत नहीं कुछ एक बाते बताने की जरूरत है. इसके पीछे मीडिया का सबसे बड़ा हाथ है. उसमे भी टेलीविज़न से बच्चे बहुत कुछ सीखते है. बच्चे बात करते है क्राइम पेट्रोल, सावधान इंडिया जैसे प्रोग्राम के बारे में. वे आजके होनेवाले हिंसा के बारे बात करते है. वे कुछ एक सीरियल की बाते करते है उदाहरण की तौर पर वे बताते है. उन्हें अगर पूछा जाए sexual abuse या रेप या हाफ मर्डर  क्या होता है, वे अच्छी तरीके से बता पायेंगे. उसमे उन्हें गालियों के शब्द या लोकल भाषा के शब्द काफी मदद करते है इन संज्ञाओ को समझने के लिए. क्योंकि वे इन गालियों का अर्थ जानते है. यह गालियाँ उनके रोजमर्रा जीवन में सुनते है. सारे बच्चे नहीं. पर कुछ बच्चे जानते है. 

उन्हें विश्वास देने की जरूरत है की वो जब भी बात कर रहे है वो कोई बुरा नहीं और ना की अच्छा. बस उन्हें अपने मन में चल रही हुई या उनके आसपास घटी हुई घटना के बारे में बात कर लेनी चाहिए. उन्हें सुनना चाहिए. ताकि वो समझ सके की क्या चल रहा है उनके जीवन में और आसपास के माहोल में. हमारी एक दोस्त कह रही थी की, उनके साथ बात करने के लिए कोई नहीं या फिर उन्हें कोई पूछता नहीं. इसलिए वो बता नहीं पाते. इसलिए उनसे बात करना शुरू कर देना चाहिए. तो देखो बच्चे बात करना शुरू कर देते है.


यह बहुत जरुरी है की बच्चो के मन में ऐसे भाव ना पैदा हो जिससे वे बताने के लिए उनके मन में शंका, सवाल, या डर पैदा हो. उन्हें उनके जीवन की हर बात बताने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. बात करने से वो चीजो को समझ पाते है, चीजो से सहज हो पाते है. उससे भी जरुरी यह है की उन्हें बड़ो की मदद मिल पाती है. 

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