Monday 20 October 2014

विश्वसनीय रिश्ता डर को मारे आसानी से...............................

रिश्ता मजबूती के उपर टिकाने की जरूरत है ना की डर के मारे. उससे कही तरह के परिणाम व्यक्ति भुगतता है. डरने वाला तो कभी भी सच ना बोले और डराने वाला सिर्फ अपने डर के माध्यम से जो चीज चाहिए उसे पूरा करने की कोशिश करता है. डर एक बात को पैदा करता है की, वो है “पावर” देखने के लिए मिलता है जैसे की टीचर-स्टूडेंट, पती-पत्नी, बड़ा भाई-छोटा भाई, बॉस-नौकर इन के रिश्ते के बिच आड़ आता है.  

जिस गुलामी को कई सालो से कई सालो से पीछा छोड़ा है जो डर के उपर टिकी हुई थी, वो आज भी अस्तित्व में है. अगर डरनेवाले ने हमेशा डरे और  वो इसका प्रतिकार ना करे तो इसका चक्र ना कभी थमेगा उसके डर को मिटाने के लिए खुलेपन से वार्तालाप होने की जरूरत है.

इस चक्र को मिटाने के लिए एक ही शस्त्र है वो यह समझदारी. समझदारी बहुत जरुरी है अपने जीवन के रिश्तो को आगे बढ़ा ले जाने के लिए. आसानी से चीजे पाने के लिए हमेशा डर दिखाने की जरूरत नहीं है. उसके लिए प्यार, मोहब्बत, आदर भी काफी है.


जब हम स्टूडेंट टीचर की बात आती है, उनके बिच में एक विचारो का आदान-प्रदान हो. यह एक ऐसा रिश्ता है जिसमे स्टूडेंट बिना किसी हिचकिचाहट से वो अपने बातो को अपने टीचर के साथ साझा करे. बोलने के लिए उसे कोई भी मन में शंका-कुशंका, संकोच ना हो की, मै कैसे कहू? तो फिर वो बाते अपने पढाई-लिखाई की हो या घर की जिसे वो साझा कर सकता है. यह संवाद इसलिए जरुरी है क्योंकि कुछ बाते ऐसी होती है की बच्चा कभी अपने माता-पिता को बता ना पाए अगर वो ना बता पाया, वही बाते मन में घर करके बैठती है और उससे कई सारी परेशानिया उस बच्चे को अपने भावी जीवन में सता सकती है. इसलिए अगर बच्चा अपने घरवालो ना बता पाए तो अपने अध्यापक को जरुर बता सकता है जिससे आगे बातो को सुलझाने मै मदद हो. 

दूसरी बात ऐसी होती है की, स्कूल की शिक्षण प्रक्रिया ऐसे होती है जिसमे बच्चे को अपने भावनाए, विचारो को देखना, बोलना, अपने आसपास के चीजो परखना, महसूस करना, यह सारी प्रक्रिया बच्चे की शिक्षा जीवन को बेहतर करने के लिए बहुत आसान हो जाती है. इस प्रक्रिया में अगर अपने अध्यापक के साथ अगर बच्चा यह बाते सिखने, जानने के लिए अपने अध्यापक की मदद ले तो क्या बात हो जाए! इसलिए बच्चे की पहली प्रक्रिया अपने अध्यापक के साथ बात करना यह पहला माध्यम है, उसके बाद जब बच्चा सारे हिचकिचाहट, वातावरण के साथ तालमेल बिठा ले तो उसके बाद शिक्षा के उस कार्यक्षेत्र तक पहुचना आसान हो जाएगा. लेकिन शुरुआती अगर स्कूल का माहोल अगदी उसके मन के भीतर डर का घर बैठा ले तो पढाई, लिखाई, खुलेपन में बाते करना यह प्रक्रिया बिच में ही रुक जाती है.


मै यही टीचर के साथ गुजारिश करती हु की वे अपने स्कूल के बच्चो के साथ डर का माहोल से दूर रखे और बच्चो के लिए आनंददायी शिक्षा प्रदान करे. जिससे अध्यापक और बच्चे के बिच में एक स्ट्रोंग, पॉजिटिव रिश्ता बना रहे. 

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