आजकल research या संशोधन के पीछे भागदोड रहे है.
इसलिए अपने रिसर्च के मार्गदर्शक के साथ अच्छा वक्त बीत रहा है. जिस तरह से वे मदद
या मार्गदर्शन अपने स्टूडेंट्स को कर रहे है उसी के साथ मुझे कई सारे बाते दिखाई
दे रही है. उनके बोलने का तरिका मेरे लिए बहुत ही यादगार रहेगा. क्योकि जिस तरह से
वे बात करते है वो मुझे इतना बहुत अच्छा लगता है. मुझे ऐसे लग रहा है की, मै भी
उनकी तरह बोलना सीखू. अपने शिक्षक की तार्किक भाषा और उसके साथ सीधी-साधी भाषा
स्टूडेंट्स के साथ इस्तेमाल करते है.
उनके बारे में एक बात अच्छी लगती है की, वे स्टूडेंट
के कमियों को समझ लेते है और उसपर वे काम करते है. कल तो मै कितनी अंचभित हो गई थी
जब उन्होंने कहा की मै उनके खुर्सी पर बैठ जाऊ. लेकिन मेरे लिए कितना अजीब था तब
पर भी वे मुझे वो बार-बार कह रहे थे पर मुझसे हुआ ही नहीं. ऐसे वक्त में कितनी
शर्म आ रही थी. मेरी तो हिम्मत ही नहीं हो रही थी की मै उस खुर्सी पर जाकर बैठू और
आखिर तक मै बैठ नहीं पाई. लेकिन उसी वक्त अपने स्कूल के दिन याद आये जहापर हम मै
से कुछ दोस्त जब हमारे गुरूजी कक्षा मै नहीं होते थे तब हम सारे स्टूडेंट्स गुरूजी के खुर्सी पर बैठने की
कोशिश करते थे. तब मजा आता था. लेकिन इस बार तो खुद शिष्य कह रहे थे तब पर भी नहीं
बैठ पाए.
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