Friday 16 May 2014

रेसकोर्स का सफ़र....................................


रेसकोर्स का नाम लिया तो आखों के सामने घोड़े आते है लेकिन अगर कभी शाम के वक्त घुमने जाए तो लोग भी वहापर दौड़ने, चलने या फिर युही टहलने आ जाते है.

बहुत सालो बाद मैंने रेसकोर्स का चेहरा देखा. सोचा की चलो जाते है चलने याने की वॉकिंग करने. वोकिंग शब्द तो बहुत ही बड़ा लगता है सुनने के लिए. चलते-चलते लगा की, मैडिटेशन करना चाहिए. कुछ दिन पहले अखबार में मैंने एक किताब के बारे में पढ़ा था. उस किताब का नाम है, “वॉकिंग मैडिटेशन” सूना था. वो किताब कहती है की चलते-चलते भी मैडिटेशन कर सकते है. तो सोचा की चलो करते है लेकिन ज्यादा देर तक अपने श्वास पर नियंत्रण नही रख पाई, क्योंकि बीच में ही मै भूल गई थी, और हम सारे जानते ही है की मनुष्य के मन के कितने सारे विचार, कल्पनाये तैरते रहते है. इसलिए निरंतर मैडिटेशन करना मुश्किल होता है.

रेसकोर्स में बूढ़े से लेकर जवान तक लोग आते है. युवाओ की बात करे तो वो भागते है या फोन पर बात करते है या फिर वे चलते-चलते गाने सुनते है उसके साथ भी बुजुर्ग भी चलना ही सही समझते है. इन सबमे मुझे एक बात ऐसी लग रही थी की हर कोई अपने उद्देश से रेसकोर्स में आ रहां था. ज्यादा करके जो लोग काफी अपने आरोग्य को लेकर चिंतित होते है या फिर डॉक्टर ने सलाह दि होती है. लेकिन मेरा उद्देश यही था की, मुझे घर से बाहर निकलना था क्योंकि घर पर बैठे-बैठे बोरियत से महसूस हो रही थी. रेसकोर्स में आने के बाद लगा की इतनी सुंदर जगह मेरे घर के पास होने की बावजूद मै उसे देखती नहीं. लोग कहा-कहा से आते है, लेकिन मै नजदीक होने के बावजूद भी नहीं जाते. माँ कहती है पास जो चीजे होती है उनकी तरफ हम ध्यान नहीं देते तो यही सच है. यह जगह बॉलीवुड में भी तो शूटिंग के लिए बड़े पैमाने में इस्तेमाल होती है.


इस जगह पर गरीब से लेकर अमीरों तक लोग यहापर चलने या दौड़ने आते है. यहापर किसी भी तरह का मुझे भेदभाव नहीं नजर नहीं आया. रेसकोर्स में आने के लिए किसी को भी पाबंदी नहीं होती. हर कोई वहा के तेज हवा का आस्वाद ले सकता है. 

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