Thursday 17 December 2015

आज तो एक कमाल की बात हुई. मेरे ऑफिस के colleague ने मुझे विक्रोली के हाईवे पर छोड़ने के बाद हुआ ऐसे की, मै स्टेशन की और चलने लगी. मुझे दो औरते ठहराकर पूछा की तुम मराठी जानती हो क्या? मैंने कहा की हां बताइये. “उम्होने कहा की उन्हें बेहद भूख लगी है. खाने के लिए पैसे नही है, आज या कल से मुंबई में आये है. उनके बच्चो को मिलने के लिए जो अब पेंटिंग का काम करते है. लेकिन वे पुणे चले गए है. अब पैसे नही है. तो अब मार्गशीष महिना चल रहा है, उपवास है, तुम कुछ खाने के लिए दोगी तो तुम्हे बहुत पुण्य लगेगा. मैंने कहा की चलिए मेरे साथ रेस्टोरेंट में मै आपको खाना खिलाती हु. पर उन्होंने मना किया क्योंकि उनके पास अब गाव (अकोला जिल्हे में शेगाव में) जाने के लिए भी पैसे नही है. तो फिर मैंने उनसे पूछा की खाने के लिए होटल जायेंगे की मै आपको पैसे दू घर जाने के लिए. उन्होंने कहा पैसे दो, फिर मैंने कहा उन्हें की मै आपको 100 रुपये दूंगी. वो राजी हो गए लेकिन और भी पैसे मांग रहे थे, फिर मैंने कहा की इतने ही पैसे है. फिर उन्होंने कहा की ठीक है. रूपये लेने के बाद पूछा मेरे बारे में तो मैंने अपने बारे में कहने की शुरुवात की, “वैसे तो काम ठाने के सरकारी स्कूल में करती हु. मुंबई में रहती हु अपने परिवार के साथ, पुणे के जुन्नर तहसील में आलेफाटा गाव है. वे मेरा गाव नही जानते थे तो मैंने कहा की, मेरे गाव में संत ज्ञानेश्वर ने रेडा से कुछ वेद बुलवाकर लिए थे, तो उसी गाव से मै हु. उसके बाद वे काफी खुश भी हुए. और उन्होंने मुझे डेढ़ सारा आशीर्वाद दिया ऐसे कहकर की, मेरा सबकुछ अच्छा हो जाएगा. कुछ मीठे बोल भी सुनाये. इतना मस्त लगा मुझे उन्हें सुनकर. और फिर मैंने कहा फिर मिलते है शेगाव में. वो मुझे कह रहे थे की, मै उनके लिए संत मुक्ताई हु. न जाने वो ऐसे क्यों कह रही थी. जितना पढ़ा है संत मुक्ताई के बारे में तो वो संत ज्ञानेश्वर की बहन है. उन्होंने काफी श्क्लोक लिखे है. किसी चांगदेव नाम के व्यक्ति की भी गुरु थी.

तब लगता है की, एक भाषा लोगो के जीवन में कितना बड़ा कार्य करवाती है किसी की और से. अगर उस वक्त शायद मराठी ना पता होती तो शायद इतनी लम्बी बातचीत नही होती मेरे उन औरतो के साथ. कैसे एक भाषा अद्भुत तरीके से जीवन में काम करती है.


उसी में से सोच रही हु, भाषा सिखना इतनी नैसर्गिक प्रक्रिया है. और उसमे आजकल भाषा सिखने के लिए मार्किट में पैसे गिने जाती है. नैसर्गिक प्रक्रिया कीतनी मशीन की तरह हो गई है. छोडो इतना सोचोगे तो काम करना मेरे लिए मुश्किल है. जो अब मेरे हाथ में है उसे तो कर ही सकते है.   

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